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187 उनके ब्रह्मा, विष्णु महेशने धर्म का निराकरण करने के कारण उपद्वता- दूर किये गये, वह हुआ उपकेश। प्रथम मतः परम्परागत धार्मिक मत
ओसवंश का उद्भवकाल एक अत्यधिक विवादास्पद प्रश्न है। 'उपकेशगच्छ पट्टावली' आदि के अनुसार वीर निर्वाण संवत् 70 में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशनगर (ओसियां) में चातुर्मास किये जाने और वहाँ के क्षत्रियों को ओसवाल बनाने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि पार्श्वनाथ परम्परा के आचार्य स्वयंप्रभसूरि के पास विद्याधर राजा मणिरत्न' भिन्नमाल में वन्दन करने आया और उनका उपदेश सुनकर अपने पुत्र को राज्य सम्हला आचार्य श्री के पास दीक्षित हो गया। उस समय विद्याधर राज मणिरत्न के साथ अन्य 500 विद्याधर भी दीक्षित हो गये। दीक्षा के पश्चात् आचार्य स्वयंप्रभ ने उनका नाम रत्नप्रभ रखा।
__ वीर निर्वाण संवत् 52 में मुनि रत्नप्रभ को आचार्य पद प्रदान किया गया। आचार्य रत्नप्रभ अनेक क्षेत्रों में विचरण करते हुए एक समय उपकेशनगर पधारे।
उपकेशनगर के सम्बन्ध में 'उपकेशगच्छ पट्टावली' में उल्लेख मिलता है कि भिन्नमाल के राजा भीमसेन के पुत्र पुंज का राजकुमार उत्पलकुमार किसी कारणवश अपने पिता से रुष्ट होकर क्षत्रिय मंत्री के पुत्र उहड़ के साथ भिन्नमाल से निकल पड़ा। राजकुमार और मंत्री पुत्र ने एक नवीन नगर बसाने का विचार किया और अन्ततोगत्वा 12 योजन लम्बे चौड़े क्षेत्र में उपकेशनगर बसाया। नये बसाये गये उपकेशनगर में भिन्नमाल के 1800 व्यापारी 900 ब्राह्मण तथा अनेक अन्य लोग भी आकर बस गये।
'आचार्य रत्नप्रभसूरि' जिस समय अपने शिष्य समूह के साथ उपकेशनगर में पधारे, उस समय सारे नगर में भी जैन धर्मावलम्बी गृहस्थ के न होने के कारण उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। भिक्षा न मिलने के कारण उन्हें और उनके शिष्यों को उपवास पर उपवास करने पड़े, फिर भी उन्होंने 35 साधुओं के साथ उपकेशनगर में चातुर्मास करने का निश्चय किया
और अपने शेष सब शिष्यों को कोरंटा आदि अन्य नगरों और ग्रामों में चातुर्मास करने के लिये उपकेश नगर से विहार करवा दिया।'
___ 'उपकेशनगर में चातुर्मास करने के पश्चात् रत्नप्रभसूरि आहार पानी को समभाव से सहते हुए आत्मसाधना में तल्लीन रहने लगे। इस प्रकार चातुर्मास का कुछ समय निकलने के पश्चात् एक दिन उपकेशनगर के राजा उत्पल के दामाद त्रैलोक्यसिंह को, जो मंत्री अहड़ का पुत्र था, एक भयंकर विषधर ने डस लिया। उपचार के रूप में किये गये सभी प्रयत्न निष्फल रहे और कुमार को मृत समझकर दाह संस्कार के लिये श्मशान की ओर चले । वहाँ आचार्य रत्नप्रभसूरि का चरणोदक सींचने पर कुमार का जहर उतर गया और उसने नवीन जीवन प्राप्त किया। शोक में
1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, प्रथम जिल्द, पृ 135
कश्च, अश्च, ईशश्च% केशाः, ब्रह्मा, विष्णु, महेशा: । तर्द्धम निराकरणाति उपहता: येन स उपकेश: ॥
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