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घटियाला से प्राप्त संवत् 918 और वि. संवत् 940 के लेखों और ओसिया से प्राप्त संवत 1013 के प्राचीनतम लेख की लिपि मिलती हुई है। इससे अधिक प्राचीन लिपि ओसिया से प्राप्त किसी लेख की नहीं है, इससे यह माना जा सके कि ओसिया आठवीं शताब्दी के पूर्व बसी हो। ओसिया के सचिया माता के मंदिर में जो लेख प्रशस्ति है, वह भी संवत् 1236 की है।
ओसिया के वर्तमान में जो इमारतें, स्मारक, छतरियां, मंदिर आदि हैं अथवा है तथा उनके जो भग्नावशेष उपलब्ध है, वे वास्तुकला की दृष्टि से वास्तुकलाविदों के मतानुसार 9वीं से 14वीं शताब्दी के मध्य के हैं।
___ ओझा जी के अनुसार यहाँ के मंदिरों की बनावट चन्द्रावती व झालरापट्टन के मन्दिरों से मिलती हुई है, जो 9वीं शताब्दी की है।
मुहणौत नैणणी ने ओसिया का जैन मंदिर 11वीं शताब्दी का बना हुआ माना है।
डॉ. डी.आर. भण्डारकर ने ओसिया के समस्त मंदिरों को तीन श्रेणी में विभाजित किया है।
1. आठवीं व नवीं शताब्दी के बने हुए। 2. ग्यारहवीं शताब्दी के बने हुए। 3. वे जो नये बने, या दुबारा बने और 13 शताब्दी के ।
श्री भंसाली की धारणा है कि विक्रम की 11वीं शताब्दी के पूर्व किसी भी लेख में या प्राचीन ग्रंथ में उपकेशगच्छ का नाम नहीं मिलता, न कोई उपकेश, उएश याओसवाल जाति या इसके किसी गोत्र का नाम ही पाया जाता है। 'कल्पसूत्र की स्थिरावली' आदि प्राचीन ग्रंथों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है। पार्श्वनाथ स्वामी की परम्परा का नाम भी उपकेशगच्छ नहीं था। विक्रम की 12वीं शताब्दी के पूर्व किसी भी शिलालेख, ताम्रपत्र, या ग्रंथ में उपकेशगच्छ का नामोल्लेख न मिलना यह सिद्ध करता है कि उपकेशगच्छ इतना प्राचीन नहीं है, जितना पट्टावलीकार ने बताया है। और अंत में निर्णय दे दिया कि 'उपकेशगच्छ पट्टावलीकार' ने भगवान महावीर के 70 वर्ष बाद ओसिया नगरी की स्थापना का और ओसवंश के उद्भव का जो समय बताया है एव जिन अट्ठारह ओसवाल गोत्रों की उत्पत्ति का समय एवं जिन प्रसंगों के उल्लेख किये हैं, वे सब उपकेशगच्छ के यतिजनों की कल्पना की उड़ानें मात्र हैं।'
निष्कर्ष रूप में श्री भंसाली ने कहा है, 'उप्पलदेव ने मण्डोर में आकर प्रतिहार (परिहार) राजा के यहाँ शरण ली, यह बात सभी लोग स्वीकार करते हैं। उप्पलदेव परमार को प्रतिहार राजा ने शरण देकर उसे भेलपुरपट्टन दे दिया और कहा कि वहाँ जाकर रहा और उसे पुन: आबाद करो, जो उजड़ चुका है। उपलदेव वहाँ गया। उसने भेलपुरपुट्टन और उसके आसपास की भूमि लेकर 1. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ 10-3 2. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, राजस्थान का इतिहास 3. मुहणौत नैणसी, मारवाड़ के परगनों की विगत, संख्यांक 137 4. Aracheological survey of India, 1908-09, Page 114 5. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में,120-21
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