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243 और सीधा पढ़े तो वि.स. 337 अर्थ अभिप्रेत है। अस्तु वि.स. 337 अथवा वि.स. 733 के पूर्व ओसियां अवश्य समृद्ध नगर रहा होगा।
प्रो. हाण्डा ने ओसियां स्थित श्री वर्धमान जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय की नींव खोदे जाते वक्त मिले उन सिक्कों भी जिक्र किया है जो, अरब शासक अहमद के समय के हैं। 8वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ओसियां पर अरबों का आक्रमण हुआ है । ये सिक्के ओसियां के सेठ मंगलसिंह रतनसिंह देवी की पेड़ी ट्रस्ट में सुरक्षित है।'
ओसियां के उत्खनन में कुछ ऐसे संचयन भाण्ड मिले हैं, जिन पर ब्राह्मी लिपि के अभिलेख हैं। प्रो. हाण्डा के अनुसार ये भांड ईसा की दूसरी/तीसरी शताब्दी के हैं। इससे ओसिया की प्राचीनता सिद्ध होती है। प्रो. हाण्डा मानते हैं कि इस उपलब्धि से इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि ओसिया नगर ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में था। ब्राह्मी के प्राचीनतम नमूने बस्ती जिले में प्राप्त पिपरावा के स्तूप तथा अजमेर जिले के बडली गांव के शिलालेख में मिले हैं। इनका समय 5वीं सदी ईसा पूर्व माना गया है। उस समय से लेकर 350 ई. तक ब्राह्मी लिपि का प्रयोग मिलता है।
__इस प्रकार नवीनतम उत्खनन में जो संचयन भाण्ड मिलते हैं, जिन पर ब्राह्मी लिपि के अभिलेख हैं, अत: इस उपलब्धिसे ओसियां की प्राचीनता सिद्ध होती है और अनेक इतिहासकारों की यह धारणा निर्मूल सिद्ध हो जाती है कि ओसिया का अस्तित्व आठवी शताब्दी के पूर्व नहीं था। ओसिया का अस्तित्व वीर संवत् 70 अर्थात् विक्रम संवत के 400 वर्ष पूर्व अवश्य था। उत्खनन के द्वारा नयी खोजों ने ओसिया की प्राचीनता को प्रतिपादित कर अब तक की मान्यताओं की धज्जियां उड़ा दी है कि ओसिया प्राचीन नहीं, अर्वाचीन नगरी है। उपलदेव कौन ?
ओसवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध ‘उपकेशगच्छ चरित्र' और 'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार वीर निर्वाण संवत् 70 में अर्थात् वि.स. से करीब 400 वर्ष पूर्व भिन्नमाल के राजा भीमसेन के पुत्र उपलदेव ने ओसियां नगरी बसाई और भगवान पार्श्वनाथ के सातवें पट्टधर उपकेशगच्छीय आचार्य रत्नप्रभसूरि ने राजा को प्रतिबोध देकर जैनधर्म की दीक्षा दी और महाजन वंश की स्थापना की।
भण्डारी जी के कथानुसार “यह बात तो प्राय: निर्विवाद सिद्ध है कि ओसिया नगरी की स्थापना उपलदेव परमार ने की जो कि किसी कारणवश अपना देश छोड़कर मण्डोवर के पड़िहार राजा की शरण में आया था।"4
यह उपलदेव कहाँ से आया, इसके विषय में कई मत है। कुछ कहते हैं, यह भीनमाल
1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ79 2. वही, पृ79 3. डॉ. भोलानाथ तिवारी, हिन्दी भाषा, पृ682 4.श्री सुखसम्पतराज भण्डारी, ओसवाल जाति का इतिहास, पृ9
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