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241 इस मंदिर में जिनदास श्रावक द्वारा निर्मित रंगमण्डप के संवत् 1013 के अलावा निम्नांकित शिलालेख द्रष्टव्य है । - 1. तोरण द्वार का लेख
वि.स. 1035 आषाढ सुदि 10 2. रंगमण्डप के स्तम्भ का लेख - वि.स. 1231 माघ सुदि 5 3. मंदिर के लेख
वि.स. 1180 चेत्रसुदि 8 दूसरी
वि.स. 1134 मिगसर वदी 7 4. जिनालय का लेख
वि.स. 1207 5. मूर्तियों का लेख
वि.स. 1088
वि.स. 1234 ओसियां भग्नावशेषों के लिये प्रसिद्ध है। ओसियां में हरिहर का पंचायतन रूप है जिसमें मूर्ति का आधा हरि (विष्णु) और आधा हर (शिव) का है। ओसिया के एक मंदिर कृष्ण की विभिन्न लीलाओं की मूर्तियां हैं। महिणसुर मर्दिनी की अनेक मूर्तियां हैं। यहाँ के प्राचीन मंदिरों में सूर्यमंदिर कला की दृष्टि से श्रेष्ठ है। मंदिर के स्तम्भ बड़े ही कलात्मक है। पहाड़ी पर स्थित सचियामाता का मंदिर है और शिलालेखों से यह सिद्ध हो चुका है कि इसका अनेक बार जीर्णोद्धार हुआ।
"वर्तमान ओसियां नगर उजड़कर भी अपनी अनेक सदियों की कहानी कहने में समर्थ है। हिन्द, जैन, शैव, शक्ति अनेक धर्मों की समन्वित गाथा ओसियां के खण्डहरों से अब भी ध्वनित हो रही है।"
इतिहासकारों ने यह मान्यता व्यक्त की है कि ओसिया आठवीं शताब्दी में बसी, किन्तु ऐसा ध्वनित होता है कि यह एक प्राचीन नगरी है। उत्खनन ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्रस्तर युग में यह नगर था, किन्तु उसके पश्चात् पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार मौन है। नगर के उत्खनन से ही प्राचीन ओसियां की प्राचीनता सिद्ध हो सकती है।
श्री भण्डारकर ने महावीर मंदिर के रंगमण्डप में स्थित 28 पंक्तियों के वृहद शिलालेख का उल्लेख किया है जिसमें रावणसंहारक श्रीराम के भ्राता लक्ष्मण के वंशजों के प्रतिहार वंश में हुए राजा वत्सराज की प्रशस्ति है, जिन्होंने मंदिर की प्रतिष्ठापना करवाई। उकेशनगर के मध्य में स्थित महावीर मंदिर के रंगमण्डप के निर्माणकर्ता जिन्दक नामक व्यापारी का विक्रम संवत् 1013 में जीर्णेद्धार कराने का उल्लेख भी शिलालेख में है। श्री भण्डारकर के अनुसार यह मंदिर सन् 770800 में अवश्य मौजूद रहा होगा।"3
भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक स्रोतों पर दृष्टिपात करें तो संवतों की कथा अत्यधिक
1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ71 2. वही, पृ74 3. वही, पृ77
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