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नया नाम देकर उसे पुन: बसाया। उप्पलदेव ने वहाँ ओसला (शरण) लिया था। भीनमाल, सिंध, पंजाब, तक्षशिला आदि दूरस्थ देश विदेश के लोगों ने वहाँ आकर ओसला (शरण) लिया। इस कारण धीरे धीरे इस स्थान का नाम ओसला से ओसी और ओसी के बाद ओसिया पड़ गया, सम्भव है।
भंसाली जी आगे लिखते हैं, 'मेरे विचार से जब उप्पलदेव शरण लेने भेलपुरपट्टन आया तो उसने इस पतनोन्मुख नगर को तथा उसके आसपास की और भूमि को लेकर एक नया नगर ओसिया बसाया, उस समय भी इस भेलपुर पट्टन में भगवान महावीर का जैनमंदिर अस्तित्व में था। वहाँ जैनों की आबादी भी थी। संवत् 1013 के अभिलेख के अनुसार वत्सराज का समय
आठवीं शताब्दी का माना जाता है। उप्पलदेव के ओसिया बसाने के कुछ वर्षों बाद जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि आए। उनके उपदेशों और चमत्कार के प्रभाव से वहाँ के निवासी जैनधर्म की ओर
आकर्षित हुए। अनेक जाति के लोगों ने प्रतिबोध पाकर अहिंसा धर्म को स्वीकार किया। यह समय लगभग दसवीं शताब्दी के आसपास का था। ये रत्नप्रभसूरि किस गच्छ के थे, इसका उल्लेख नहीं मिलता। ये उपकेशगच्छीय तो नहीं थे, यह निश्चित है, कारण ‘उपकेशगच्छीय पट्टावली के अनुसार इस गच्छ के छठे व अंतिम आचार्य रत्नप्रभसूरि 5वीं शताब्दी में हो चुके थे।'
वीर संवत् 70 में ओसवंश के उद्भव को नकार कर भंसाली जी कहते हैं, अत: स्पष्ट है कि उस समय तक न तो उपकेशगच्छ ही था और न उएश, उपकेश या ओसवाल जाति का उद्भव ही हुआ था।
__ अंत में भंसाली जी कहते हैं, अत: सबकुछ विचार करने पर हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस ओसवाल जाति का उद्भव 8वीं शताब्दी के बाद ही हुआ है, इसके पूर्व कदापि नहीं।' निस्संदेह उपकेशगच्छ पट्टावली का ओसवाल (उएश या उपकेश) जाति का उद्भव वि. संवत् 400 वर्ष पूर्व होना बताना और भाटों का बीये बाइसे (222) में होना मानना, ये दोनों ही विचार भ्रामक और काल्पनिक उड़ाने मात्र है।'
इस सम्बन्ध में निम्नांकित बिन्दु विचारणीय हैं
ओसिया की प्राचीनता उप्पलदेव कौन? परमार या क्षत्रिय उपकेशगच्छ की प्रामाणिकता
1. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ25-26 2. वही, पृ27 3. मुनि ज्ञानसागर, पार्श्वनाथ परम्परा का इतिहास 4. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ29 5. वही, पृ30 6. वही, पृ31
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