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235 परिहारों ने नवीं शताब्दी में शरण दी।'
___ जहाँ तक परिहारों की उत्पत्ति का प्रश्न है, यह कहा जा सकता है कि बाहुक राजा के घटियाला (जोधपुर से 20 मील दूर) में वि.सं 918 और 941 के शिलालेख मिले हैं। इन शिलालेखों से ज्ञात होता है कि हरिश्चन्द्र ब्राह्मण, जो मण्डोर के राजा के यहाँ ड्योढीदार था, उसकी राजपूत स्त्री से राजुल पुत्र उत्पन्न हुआ। इस राजुल से ही परिहारों (प्रतिहारों) की उत्पत्ति मानी जाती है। राजुल की 12वीं पीढी में बाहुक राजा हुआ । इस प्रकार 12 पीढ़ी का समय 200-250 वर्ष माना जा सकता है। इससे यह सहज सिद्ध होता है कि परिहारों की उत्पत्ति आठवीं शताब्दी में हुई। अत: उप्पलदेव परमार आठवीं शताब्दी में या उसके बाद ही मण्डोर में शरण लेने आया, उसके पूर्व नहीं। अत: उप्पलदेव ने ओसिया भी 8वीं शताब्दी में या उसके बाद ही बसाई, इसके पूर्व नहीं, यह निश्चित है। घटियाला शलालेख से यह भी ज्ञात होता है कि कुक्कुक मण्डोर का प्रतिहार शासक था। उसने संवत् 918 में एक जैन मंदिर का निर्माण कराया था।
इस पर भी विचार किया गया कि ओसिया कब बसी। 'परमारों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अब तक उपलब्ध शिलालेखों से इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उप्पलदेव परिहार का समय 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच का है, अत: उपलदेव ने इसी काल में ओसिया बसाई है। इतिहासकार डा. भण्डारकर, रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा, डॉ. जगदीश सिंह गहलोत, मुहणौत नैणसी, पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेऊ, मुनि दर्शनविजय जी, तपागच्छ पट्टावली, सुख सम्पतराज भण्डारी, पूरणचंद जी नाहर, नाहटाजी तथा जैन प्रश्नोत्तर ग्रंथ' के लेखक उमरावसिंह जी टाक आदि सभी का यही मत है कि उप्पलदेव ने 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच ही ओसियां बसाई है।'
श्री भंसाली के अनुसार ओसिया में आज तक ऐसी कोई वस्तु (मुद्राएं, लोहे तांबे के उपकरण, बर्तन भाण्डे आदि) उत्खनन में नहीं मिली है, जो इस नगरी को 8वीं शताब्दी के पूर्व की सिद्ध करती हो।' ओसिया के महावीर स्वामी के मंदिर में जो अभिलेख (प्रशस्ति) लगा हुआ है, वह संवत् 1013' का है। मंदिर के स्तम्भ पर भी वि.सं 1075 का एक छोटा सा लेख है। मंदिर के तोरण और मूर्तियों पर कई लेख उत्कीर्ण है, जो संवत् 1035 से 1758 तक के हैं। एक लेख संवत 1245' का है। जिसमें एक व्यक्ति द्वारा अपना मकान मंदिर को भेंट करने का उल्लेख है। 1. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ7-8 2. नाहर, जैन लेख संग्रह, संख्या 945 3. Dr. K.C. Jain, Jainism in Rajasthan. 4. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ8-9 5. वही, पृ9 6. वही, पृ 10 7. नाहर, जैन लेख संग्रह, लेखांक 788 8. वही, लेखांक 789 9. वही, लेखांक 806 10. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ10
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