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ओसवालों की उत्पत्ति का है, न महावीर के मंदिर की मूल प्रतिष्ठा का। इस शिलालेख में ओसिया में प्रतिहारों का राज्य होना लिखा है, जिसमें वत्सराज प्रतिहार की प्रशंसा की गई है। यह मंदिर वि.सं 1013 में नहीं बना, इसके पहले आचार्य कनकसूरि ने महावीर मंदिर में शांतिपूजन पढ़ाकर भगवान शांतिनाथ की मूर्ति संवत् 1011 चैत्र सुदी 6 को कराई, जिसका शिलालेख' उपलब्ध
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इस प्रकार ' उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार महावीर के निर्वाण के 70 वर्ष पश्चात् अर्थात् विक्रमसंवत् 400 वर्ष पूर्व ओसियां में पार्श्वनाथ परम्परा के आचार्य रत्नप्रभ सूरि जी ने महाजन वंश की स्थापना की। महाजन वंश का ही नामान्तर तदनन्तर में उपकेशवंश हुआ ।
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संवत् 1393 में विरचित 'उपकेशगच्छ पट्टावली' में ओसिया में महावीर मंदिर के निर्माण प्रसंग में नगर के उद्भव की कथा भी दी है। 'जैन शास्त्रों के प्राचीन ग्रंथ भण्डार में इस ग्रंथ की विशिष्टता और प्रामाणिकता असंदिग्ध है। जैनाचार्य आत्मरामजी (आनन्दविजय जी) ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'तिमिर भास्कर' के दूसरे भाग में सम्पूर्ण पट्टावली प्रकाशित की है। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान इतिहासकार प्रो. ए. एफ. होर्नले ने 'इण्डियन एंटीक्केरी' (189) में इस अविकल आंग्ल भाषा अनुवाद टिप्पणियों के साथ प्रकाशित करवाया था । ' 2
श्री कनकसूरि कृत 'नाभिनन्दन जिनोद्धार' ग्रंथ में भी उपकेशपुर की समृद्धि और विस्तार का वर्णन है । दोनों ग्रंथ विक्रम की 14वीं शताब्दी में लिखे हुए हैं। ' (2) भाटों और भोजकों का मतः 24 विक्रम संवत्
ओसवंश के उद्भव का द्वितीय मत भाटो और भोजकों का मत है। जितने भी भाटों और भोजकों के गुटके उपलब्ध हैं, वे सभी ओसवंश के उद्भव का समय 222 विक्रम संवत् मानते हैं।
इसमें संग्रहकर्त्ताओं को निम्नांकित स्थानों से गुटके उपलब्ध हुए हैं:
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1. ओसिया के महावीर मंदिर का शिलालेख
1. पूर्णचन्द्र नाहर ग्रंथागार
2. एशियाइटिक सोसाइटी का हस्तलिखित ग्रंथभण्डार
3. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर
4. केशरिया नाथ मंदिर ग्रंथागार
5. स्व. मोहनलाल दलीचंद देसाई संग्रह
6. अभय जैन ग्रंथालयय (अगरचंदजी भंवरलालजी नाहटा), बीकानेर
ओम संवत् 1011 चैत्र सुदी 6 श्री कक्काचार्य शिष्य देवदत्ता गुरुणा उपकेशीय चैत्यगृह अस्वयुज चैत्र षष्टयं शांति प्रतिमा स्थापनिय गंदोदकान् दिवातिकामा सुलप्रतिमा इति ॥
2. मांगीलाल भूतोड़िया, इतिहास की अमरबेल (प्रथम भाग ), पृ62-63 3. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम भाग, पृ 63
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