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गुटका नं. 1 - ग्राम ओलवी परगना बिलाड़ा के ठाकुर दौलतसिंह भाटी (राजपूत) की पुस्तक में साधु बालाराम का विक्रम संवत् १९७१ में लिखे छन्द का नागरी रूपान्तर :
कवित्त श्रीमील बसै दोय सेठ रोहड ने उहड़ भाई निनाएँ उहड़ रे लाख रोहड सो लाख सवाइ उहड़ ईउडा उपनी कोट मै मेहल करी .जै विनती करे वीर सों लाख दान उधार दीज बसै कोट थाहीं बिगर एम भोजाई मुख भाखीयो मरण भलो धृग मांगणो हृदय में गोसो राखीयो ।।1।। शहर बसे श्रीमाल गाज चोबीस गरद है राज करे परमार ऊठ राजा देशलदे तिहाँ देशल पुत्र दत्रा दोय उपल अणमीनीत आबीजे पटाइजा पर धेल दोय सेर जुवार उपल न दीजै दिवस एक उपल ने देखने कुँवर ने ऊहड़ कहे पुर सूरज क कपड़ों उछल रावत इणिविध गोंढ़ रहै ।।2।। सूरज उगे सासती कुवर नित गोठ कराडै रूडे काज रावताँ अस आवधि अणाडै मड बांका अण जंगा धोडां गज घटां आटो पोहर उनमाद भणा उगडा गुज भटां राज रे काज मारै रबै ओतो दाणव उठीयो कुंवरा राव उखी नएको करे दुष्ट जाणि देसो दीयो ।।3।। आठ सहस असवार रत सहस इग्यारह गामी सहत्र गुणतीत पायकपाला नहीं पार है उठीसह सहस अठारह तीस हाथी मद झरंता दस सहस दूकान कुलह व्यापार करतां पोकरणराव प्रमार रे मेल घरेवार साथे मंदीया उहड़ पर श्रीमाल लखां बदंता ए ताव दीया ।।4।। से हस उछाला सहित उपल मंडोवर आयो मंडोवर रा धणी करी महिर देश पूर महिल दिखायो पंडित जोशी पूब उरत बसाई नव तोरी वेद खत्री यां धर बचे करो सेवा शिव के री शिव रो राह जाणे सको जाणे नहीं राह जैन रो शिष्य कहै रत्मप्रभसूर ने कोईक वीचार धरण रोकरो।।5।। शिष्य तणीकथा सुणै कह कह उर कोप ज कीधो आणो पूणी एक कयो-शिष्य ने जठे दीप तठे चले जाय
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