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209 उपल देव ओसीया नगर शेण माल समापिया ।
भाव सु मधाकर भोजक थीर कुल प्रोहित थापिया ।।15।। एशियाइटिक सोसाइटी में उपलब्ध गुटके
कलकत्ता स्थित एशियाइटिक सोसाइटी में एक हस्तलिखित गुटका उपलब्ध है, इसका शीर्षक है ओसवाला री उत्पत रा कवित्त।' नाहर जी के गुटके और इस गुटके में 15 कवित्तों के कथानक तो समान है, किन्तु दो गुटके भिन्न हैं। इसमें पहले कवित्त में स्पष्ट कथन है कि भगवान महावीर के निर्वाण के 52 वर्ष पीछे रत्नप्रभसूरि आचार्य पद पर पदासीन हुए और वे ओसिया पधारे। इन्होंने एक लाख अस्सी हजार राजकुलों को प्रतिबोधित किया और इस प्रकार ओसिया नगरी में ओसवाल वंश की स्थापना की। इससे स्पष्ट कथन है कि श्रावण पक्ष में 222 संवत् में ओसवंश की स्थापना का उपदेश दिया। तब परमार ऊपल के अतिरिक्त गहलोत, चौहान, राठौड़ और राजपूतों कौमों के ओसवाल होने का उल्लेख नहीं है, किन्तु परमार ऊपल कहकर इनके भी ओसवाल होने का संकेत दे दिया हैं -
श्री वर्धमान जिन पछे पाट बावने पद लीधो सतगुर आके संसार नामं गुरदा ओथो दीधो तात आठ दस बरस नगर ओयसीया आए प्रतबोधे चामुंड नाम तीहां साचल पाए एक लाख अस्सी हजार राजकु ल प्रतिबोधिया श्री बिजै रत्नप्रभसूर ओईसीया नगर ओसवाल थिर थापिया। श्रावण पख सितात संवत बीए नै बावीसे अरक वार आठम ओस वंस हुआ उपदेशे प्रतिबोध परमार उपल जैन धरम में आयो प्रथम गोत सो पाँच बावन सहत बंधायो नव मण जनोई ब्राह्मण अवसधरी उतारीया
भोजन जीमाय थापिया भोजग कीधा तस आरंभ करीयः ।। एशियाइटिक सोसाइटी में ऐसे और भी गुटके हैं, जिसमें दो मुख्य हैं -
(1) बिलाड़ा परगना के ओलवी ग्राम के ठाकुर दौलतसिंह भाटी के यहाँ से उपलब्ध हुआ है, जो विक्रम संवत् 1917 का है।
(2) सेवग सुखराम लोडावत का है। इन दोनों के नागरी रूपान्तर दिये जा रहे हैं।
एशियाटिक सोसायटी के एक और गुटके में ओसवाल वंश की उत्पति के कथानक पर प्रकाश पड़ता है।
1. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ86
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