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राज करे प्रमार, दुठ राजा देशल है । देशल पुत्र दस दोय, उपल अणमाने तो अखीजे । दुजा पटा दुणा, उवाने दोय सेर ज्वार है दीजे । एक दिवस उपल ने देखीने, कवर ने उहड़ कहै । पुर सुरी ज कन्हैं कपड़ा प्रगल रावत मो गैडे रहे ।।2।। सुरज उठो सासती, कँवर नित गोठ कराड़े । रूड़े हित रावता, इसे आवधी अनाड़े । भड़ बंगा अण भंग ठाट घोड़ा गज थटां । आठ पोहर उमाद भणाडे पमाड़ गुण भटां । राज रे काज मारे रखे, ओ तो दानव उठीयो । कवर परधान ऐको करे, दुष्ट जाण देसोटो दीयो ।।3।। अठ सहस असवार, रथ सहज इग्यारह । गाड़ी सहस गुण तीस, पाला पाईक नहीं पार है । ओठी सहस अठार, तीस हाथी मद झरंत । दस सहस दुकान कोड व्यापार करंत । पाकरण राव जुवार रे, मेल घर बार साथ मंडीया । सेठ उहड़ ने उपलि सहत छड़तां साते छंडीया ।।4।। सहस उचाला साथ, उपल मंडोवर आयो । मंडोवर रे धणी, दिसपुर मेहल दीखावो । पंडित जोशी पूछ तुरत वसाई नव तेरी । वेद घर खत्रीया बाचीजै, करे सेठ सेवा विप्र केरी । शिव री राह जाणे शको, नहीं जाणे धर्म जैन रो । शिष्य कहे रत्न प्रभु सूर ने, कोई क विचार धर्म रो करो ।।5।। वर्धमान जिन तकी, पाट बावने पद लीधो । श्री रतन प्रभु सुर, नाम वाझ गुरु दीधो । ताते आठ दस बरस, नगर ओयसां आयै । प्रतिबोधे चामंड नाम, तसाचल पाए । चार लाख चौरासी हजार घर राजकुली प्रभ बांधीया। श्री रत्न प्रभु सुर ओयसा नगर ओसवाल थीर थंपीया।।6।। सावण पख श्री तातु संवत वीये बाबीसे । अरकवार (सूर्यवार) आठम ओस वंस हुआ पदेसे । प्रतबोधे पवार, उपल ज्याने धरम आये । अथ गोत पाँच सौ, बायल भो न्यात बँधाये । मण नव जनोई ब्राह्मणां, अशंक मल उतारीया । भोजन जीमाय थापीया, भोजग कर थीत आरंभ काकीया ॥7॥ प्रथम गोत तातेड़ बिये बाफणा बाहदर ।
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