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रिष कह्यो विप्र घणा राजरे अधिकारी गुरबुध अनम जो कै कँवर ने जीवचो तो पूछो म॒हतांप नम ।।6।। नृपत पूछे गुरु विप्र कवँर जीवै किण कारण ओखद मंत्र उपचार वेद बड़ा कियो विचारण पण गुण लग न लगार रिष कहियौ सुण राजा हूँ जीबाऊ कवर कहुँ सो करसओ काजा तिणबार नृपत इम उच्चरे कहो राज सो मेह करां जो कवर काज चूकां वचन मोत अफूटी सह मरां ।।7।। तद कहियो रिषराज कवर महला पदरावा मंत्र फेर मंत्रीया जाय पोढ़ाय जगावो खमा खमा कर स्वास गीत मंगल चा गाया बाजा सुभ बाजिया उठ गुरु चरणां आया मंगलीक कुंकुंभ कर गोहली चोक मोतियाँ पूरतदू पालज्यों दया रिषराज भणव सुधा सिरजिणधरमबद ।।8।। जैन धरम जिण दीह अभंग षरधा आदरियो मिटी आद मरजात ध्यान हिय रिषब सुं धारियो विषां हंत बदल्ल मूल अज्ञान ह मानिनी ऊ आंको आविया राज विग्रह रचानी नृप विर्र लाग देवी नहीं कर घरणो तागो कियो तद यो मरण केतांतणो विरलो विप्र जु जोवियो ॥9॥ तिण हि त्यां कारणे प्रजा राजा पीड़ावे सा का बंध सहैर मिनक चालता मर जावे कोई ताप विरोद सत्र पण केय के य संघारौ केय सरप ले सीह जलण पर के ताजारे तिण परै सहर खाली हुयो बसेजाय भिनमाल लग अनरथ हुयो गुरु कहे अनम भूख मरे भूखा जिनग ।।10।। तद कहियो रिखराज याद गुर मेट किया किम तिण तीतागो कियो तिका सह पाप लगो तुम अबे हुवे वा बंस जिकां मनोज दिवाड़ो बै देवे आशीष उदोतद होय तुमारा आणियां विप्र वोहो कर अरज पगे लाग परचानिया आविदा के क गुरु आगलाके नह चैन ह आनिया॥11॥ आविया गुरु अगल नृपत कर जोर कह्यो बल थे म्हारा पुजनीक आद नमत णीर चौ इल होणहार आ हुई लीह भवतणी लुपाणी
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