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231 यही समय ओसिया के बसने का मालूम होता है। पड़िहार राजा बाहुक और भाई कुक्कुक के शिलालेखों (घटियाल ग्राम में प्राप्त) संवत 918 और संवत् 940 की लिपि से भी उक्त प्रशस्ति की लिपि मिलती हुई है। इससे पुरानी लिपि ओसियां में किसी और पुराने लेख की नहीं है।'
__ ऊपलदेव ने मण्डोवर के जिस राजा के यहाँ आश्रय लिया था, उसे सब लोगों ने पड़िहार लिखा था, लेकिन पड़ितारों की जाति विक्रम की सातवीं सदी में पैदा हुई, ऐसा पाया जाता है। इसका प्रमाण बाहुक राजा के उस शिलालेख में मिलता है, जिसमें लिखा है कि ब्राह्मण हरिश्चन्द्र की राजपूत पत्नी से पड़िहार उत्पन्न हुए। पड़िहार जाति की उत्पत्ति राजा बाहुक से 12 पुश्त पहले यानि हरिश्चन्द्र ब्राह्मण से हुई है। और बारह पुश्तों के लिये ज्यादा से ज्यादा समय 300 वर्ष का निश्चित किया जा सकता है। राजा बाहुक का समय संवत् 894 का था। इस हिसाब से हरिश्चन्द्र का पुत्र राजुल जो मण्डोवर के पड़िहार राजाओं का मूल पुरुष था, वह संवत् 600 के करीब हुआ हो।
आचार्य रत्नप्रभसूरि जी के उपदेश से जो अट्ठारह कौमे एक दिन में सम्यक्त्व ग्रहण करके ओसवाल जाति में प्रविष्ट हुई थी, उन सब के नाम करीब ऐसे हैं, जो संवत् 222 में दुनिया के पर्दे पर ही मौजूद नहीं थी।
यह अट्ठारह जातियां निम्नानुसार हैं1. परमार 7. पड़िहार
13. मकवाणा 2. सिसोदिया 8. बोड़ा
14.कछवाला 3. राठौड 9. दहिया
15. गौड़ 4. सोलंकी 10. भाटी
16.खरवद 5. चौहान 11. मोयल 17. बेरद 6. सांखला 12. गोयल 18. सौरव
परमार जाति वि.सं 900 के पश्चात् दृष्टिगोचर होती है। 222 वि.सं में परमारों का अस्तित्व नहीं था।
सिसोदिया गहलोतों की शाखा है। रावल समरसिंह के समय का एक शिलालेख संवत् 1342 का खुदा हुआ आबू पहाड़ पर है।
राठौडों के विषय में कहा जाता है कि संवत् 1000 के करीब मारवाड़ हथकुण्डिया नामक स्थान में ये लोग बसते थे। बीजापुर के संवत् 996 और संवत् 1153 के लेख में इन्हें राष्ट्र कूट और हस्तकुण्डी नगरी का मालिक लिखा है। इसका कोई लेख वि.सं 900 के पूर्व का नहीं
सोलंकी दक्षिण में रहते थे और चालुक्यवंश के नाम से प्रसिद्ध थे। इनके कोई
1. ओसवाल जाति का इतिहास, पृ3-12 2. वही, पृ12-13 3. वही, पृ13
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