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216 5. स्व. मोहनलाल दलीचंद देसाई संग्रह
इनके संग्रह में कवि उदयरत्न 'पांच पाट रास' नामक एक गुटका उपलब्ध है। इसमें तीनों जैन जातियों- श्रीमाल, ओसवाल और पोरवाल जातियों की स्थापना का उल्लेख है। श्रीमालियों की कुलदेवी महालक्ष्मी है, पोरवालों की अम्बिका और ओसवालों की संचिया
देवी
सीध पुरीईं पोहता स्वामी वीर जी अन्तरजामी। गौतम आदे गहू गाट बीच माहे बही गया पाट ।। त्रेवीस उपरे आठ बाँधा धर्मनो बांट श्री रहपि । रत्न प्रभू सूरिश्वर राजे आचारज पद छाजे ।। श्री रत्न प्रभ सूरि राय केशीना के ड़वाय । सात सौ सेका ने समयेरे श्रीमील नगर सनूर ॥ श्री श्रीमली थापिया रे महालक्ष्मी हजूर । नेऊ हजार घर नातीना रे श्री रत्न प्रभ सूर । थिर सुहरत करी थापनारे उल्लट घरी ने उर। बड़ा क्षत्री ते भामा रे नहीं कार दियो कोय ।। पहलो तिलक श्रीमाल ने रे सिगली नाते होय। महालक्ष्मी कुल देवता रे श्रीमाल संस्थान ।। श्री श्रीमालीनाती ना रे जाने बिस्वा बीस । पूरब दिस थाप्या ते रे पोरवाड कहेवाय ।। ते राजा ते समये रे लघु बंघव इक जाय । उवस वासी रहयो रे तिणे उवेशापुर होय ।।
ओसवाल तिंहा थापियारे सवा लाख घर जाय।
पोरवाड़ कुल अम्बिकारे ओसवाल संचियाय ।। 6. अभयग्रंथालय, बीकानेर
राजस्थानी साहित्य और जैनसाहित्य के मूर्धन्य विद्वान अनुसंधित्सु श्री अगरचंदनाहटा और श्री भंवरलाल नाहटा के अभय ग्रंथालय, बीकानेर में निम्नांकित गुटके उपलब्ध हैं -
1. हस्तलिखित ग्रंथ क्रमांक 648 ओसवंश थापनकवित्त (शोभकवि रचित) 2. हस्तलिखित ग्रंथ क्रमांक 7765 ओसवाल उत्पत्ति कवित्त 3. हस्तलिखित ग्रंथ क्रमांक 501 (संवत् 1835 में लिखित)
“अथ उसवालां रा कवित्त" प्रथम गुटका वीरात् 70 वर्ष में ओसवंश की स्थापना की पुष्टि करता है। इसमें कहा
1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, 192-93
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