________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बांण बंका अनभंग ठाठ घोड़ां गज ठठ्ठां ह आठ पोर उदमाद बनावे निज गुण ठठ्ठां ॥ राज रे काज मारे रखै ओ तो दाणव ऊटियो । कवर प्रधान एको करे दुष्ट जान देसाटो दियो ||3|| गाड़ी सहस गुणतीष रथ बल सेष इग्यार । अश्व सहस अठार प्रगट पाय गाण पाले ।। उंच सहस पचीस तीस हाथी मध झरंता । दस सहस दुकान कुंवर व्योपार करंता ॥ पान से शेष विप्र मघामिलकर साते मंडीया । सेट तो उहड़ उपर छन्तों एता छंडीया ||4|| सकल ओचालो सहित ऊपल मंजोवर आवे । मंजोवर रो धनी देश पुर मैल देखावे ॥ नाय बसे नव तेरी बडम आप बसावो इस मंडोवर अके कंवर जी राज करावो ॥ मंगा विप्र तरे कयो एक अर्ज सुनीजिये । बस जाय सहर उपल बसे कोई उपाय करीजिये |15|| मगा विप्र तिन समय एक मन सक्त अराधे । सुप्रसन्न हुई सक्त आराकेन अराधे 11 जद कयो कर जोड़ तवे एक राकस चावो । माजी जिनने मार बस्तियां सहर बसावो ॥ मारियो तबे मरता मुखां करुणाकर वोसेकयो मोय नाव नम्र बसै देवी केता वर दियो |16|| पिंडत जोशी पूछ तुर्त वसी नव तेरी । बस्ती बसत कर विच करे सेवा सिव केरी ॥ देवी रे बरदान पुत्र राजस फल पायो । जिनरो नाम जैचंद्र वर्ष पंदरे परनायो 11 निकट राज ओस्यां नगर के भूप उपल करें रतन सूर । प्रभु आयो ओसियां नगर अया ईनीज अवसर |17|| नरशा सहर विचार प्रम गुरु शिष्य पठायो । शिष्य फिर आयो र सकल आहर किणी न पायो || अति हुये उदास परम मन में पिछतायो । बदे मधुर सुबैन विप्र भोजन बैरायो || सिव धर्म रहा जाने सको जाने न धर्म जैन रो । सिष्य को रतनसूर प्रभु ने कोई उपाव धर्म रो करो ॥8॥ सिष्य तनी कथ सुने के दर गुरु को पज कीनो । आनो पुनी एक दुये शिष्य जेठो दीनो ॥
For Private and Personal Use Only
207