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202 की प्रशस्ति है, जिसका समय विक्रम संवत् 783-84 है।'
वि.सं 508 का एक शिलालेख कोटा राज्य के अटारू नामक ग्राम के एक जैन मंदिर में मिला है, जिसकी समालोचना पुरातत्वज्ञ मुंशी देवीप्रसाद ने 'राजपूता की शोधखोज' में की है । इस शिलालेख में भंसाशाह का नाम अंकित है। भैंसाशाह के नामसे ही मेवाड़ का भैंसरोड़ा बसाया गया।
महावीर निर्वाण से 84 वर्ष का एक शिलालेख व गौरीशंकर हीराचंद जी ओझा जी को शोधखोज में वर्ली ग्राम से मिला है, जो अजमेर के अजायबघर में सुरक्षित है।'
मध्यकाल में भारतीय इतिहास के स्रोतों को नष्ट किया गया, पुस्तक भण्डार जला दिये गये, भारतीय मंदिरों और मूर्तियों को खण्डित किया गया, कीर्ति स्तम्भ और असंख्य शिलालेख नष्ट किये गये और हमारे ऐतिहासिक धरोहर को लुप्त प्राय: कर दिया गया।अत: जो कुछ उपलब्ध होता है, उसी के आधार पर इतिहास का भवन निर्मित होता है।
__आज भारतीय इतिहासकार भगवान महावीर को ही नहीं, पार्श्वनाथ और कृष्ण के चचेरे भाई नेमिनाथजी को भी इतिहासपुरुष स्वीकार करते हैं। ऐतिहासिक प्रमाणों से मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त हो चुके हैं । नागेन्द्र वसु ने यह सिद्ध कर दिया है कि जो शिलालेख, स्तम्भलेख, आज्ञापत्र अशोक के माने जाते हैं, वे उनके पौत्र जैन सम्राट सम्प्राति के हैं। कलिंगपति चक्रवर्ती महाराजाखारवेल जैनधर्म के उपासक ही नहीं, अपितु कट्टर प्रचारकथे, यह उड़ीसा की हस्तीगुफा के लेख से स्पष्ट है।
'उपकेशनगर बसाने वाले उपलदेव को इतिहास से अनभिज्ञ कई व्यक्ति परमार कहते हैं। वस्तुत: वे परमार नहीं थे। भाट भोजकों की दंत कथाओं के अतिरिक्त किन्हीं प्राचीन ग्रंथों
और पट्टावलियों में उत्पलदेव राजा को परमार लिखा नहीं मिलता है। हमारे उत्पलदेव का समय विक्रम से 400 वर्ष पूर्व का है, उस समय परमारों का अस्तित्व ही नहीं था। परमारों के आदिपुरूष धूम्रराज थे। उनके बाद उत्पलदेव नाम के एक राजा अवश्य हुए, जिनका कि समय वि.सं. की दसवीं शताब्दी का है। इन्हीं परमार जाति के उत्पलदेव को हमारे श्रीमाल नगर के राजवंश में उत्पन्न हुआ सूर्यवंशी उत्पलदेव को एक ही समझ लेना, यह एक अक्षम्य भूल है।'
'उपकेशगच्छ पट्टावली के अनुसार भीमसेन के पुत्र उत्पलदेव हुए जो परमार नहीं थे ।' गोरीशंकर हीराचंद ओझा जी के ने 'कुवलयमाला' कथा को आधार बनाकर यह स्वीकार 1. पार्श्वनाथ परम्परा का इतिहास, प्रथम जिल्द, 1164 2. वही, पृ165 3. वही, पृ165 4. वही, पृ175 5. वही, पृ175 6. वही, पृ177-178 7. उपकेशगच्छ पट्टावली
तत्र श्री राजा भीमसेन: तत्पुत्र उत्पलदेव कुमार अपर नाम श्री कुमार: तस्य बांधव: श्री सुरसुन्दरो युवराजो राज्य भारे धुरन्धरः ।।
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