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203 किया है कि वि.सं. 400 वर्ष पूर्व और इसके पूर्व भिन्नमाल पर गुर्जरों का राज्य था। विक्रम की छठी शताब्दी में हूण तोरमाण पंजाब की ओर से मारवाड़ में आया, उस समय भी भिन्नमाल पर गुर्जरों का ही राज्य था। तोरमाण ने गुर्जरों को पराजित कर दिया, अत: वे गुर्जर लाट प्रान्त की ओर
चले गये। उन गुर्जर लोगों के नामानुसार ही उस प्रान्त का नाम गुर्जर पड़ गया। हूण तोरमाण आया था, उस समय मारवाड़ में नागपुर (नागौर), उपकेशपुर, जाबलीपुर (जालौर) माडव्यपुर एवं भिन्नमालादि आदि अनेक प्रसिद्ध नगर थे। इन प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय भिन्नमाल नगर अच्छा आबाद नगर होगा। जिस समय तोरमाण ने भिन्नमाल में अपनी राजधानी स्थापित की, उस समय वहाँ पर जैनाचार्यों हरिदत्त एवं देवगुप्त विराजते थे। उन्होंने तोरमाण को जैनधर्म का उपदेश देकर जैन धर्मानुयायी बनाया।'
ओसियाके महावीर मंदिर में वि.सं 1013 का शिलालेख लगा हुआ है। इस शिलालेख में उपकेशपुर में प्रतिहार वत्सराज का राज्य होना लिखा है। वत्सराज परिहार का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का है, अत: आठवीं शताब्दी में उपकेशपुर अच्छा आबाद था।
कुछ विद्वानों ने यह अटकल लगाई कि ओसवंश के संस्थापक रत्नप्रभसूरि (प्रथम) न होकर अंतिम रत्नप्रभसूरि है। आद्य रत्नप्रभसूरि और अंतिम रत्नप्रभसूरि के बीच 900 वर्षों का
अन्तर है। अंतिम रत्नप्रभसूरि समय के तो अनेकों ग्रंथ आज मिलते हैं, किन्तु किसी भी ग्रंथ या शिलालेख से यह पता नहीं चलता कि विक्रम की पाचवीं शताब्दी में अंतिम रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल वंश की स्थापना की हो, क्योंकि उस समय का इतिहास इतने अंधेरे में नहीं है।'
विद्वानों ने यह भी अटकल बाजी लगाई कि ओसिया के महावीर मंदिर में वि.स. 1013 का शिलालेख प्राप्त हुआ है, इसलिये यह अनुमान लगा लिया कि ओसवंश की उत्पत्ति दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी में हुई हो। यह शिलालेख अत्यंत खण्डित है और इसका लेख न
1. श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा, राजपूताने का इतिहास, 456 2. ओसिया के महावीर मंदिर का शिलालेख
तस्या काषत्किल प्रेम्णालक्ष्मणः प्रतिहारताम् ततोऽभवन् प्रतिहार वंशोराम समुद्रवः ॥ दद्वंशे सबशी बशीकृत रिपुः श्री वत्सराजोऽभवत्कीर्तिर्य तुषार हार विमला ज्योत्स्नास्तिरस्कारिणी नस्मिन्मामि सुखेन विश्व विवरे नत्वेव तस्माद्वहिन्निर्गन्तु रिगिभेन्द्र दन्त
मुसल व्याजाद काÓम्मनुः॥ 3. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, प्रथम जिल्द, पृ 182 4. ओसिया का महावीरमंदिर का शिलालेख
प्रकट महिमा मण्डपः कारितोऽत्र भूमण्डलो मण्डप: पूर्वस्यां ककुमि त्रिभारा विकलासन् गोष्ठिकानु तेन जिनदेवद्याम तत्कारितं पुनरमुण भूषणं संवत्सर दशत्यामार्णकाया वत्सरैस्त्रयो दशमि फाल्गुन शुक्ल तृतीय
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