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देवचंद्र का उल्लेख है। उपाध्याय देवचंद्र का समय पहली या दूसरी शताब्दी का माना जाता है। कोरंटपुर का महावीर मंदिर उसके पूर्व का बना हुआ है। 'कल्पसूत्र' की कल्पदुमकलिका टीका की स्थिरावली' में कोरटपुर की प्राचीनता का उल्लेख है।' कोरंटाजी तीर्थ के इतिहास में यह बताया गया कि यह मंदिर लगभग 2400 वर्ष पुराना है।
इसी तरह तपागच्छ पट्टावली' और आंचलगच्छ पट्टावली' के अनुसार रत्नप्रभसूरि द्वारा ओसवंश की उत्पत्ति मानी गई है। आंचलगच्छ पट्टावली के अनुसार उपकेशपुर विक्रम की आठवीं शताब्दी में उपकेशवंशियों से फलाफूला था। इन पट्टावली आदि के प्रमाणों से ओसवाल जाति की उत्पत्ति का समय वि.पू. 400 वर्ष मानना न्यायसंग और युक्तियुक्त है।'
__ ओसवंश के अनेक गोत्रों की वंशावलियां उपलब्ध है, उनसे भो इस जाति की प्राचीनता सिद्ध होती है। यह माना गया है कि उपकेशपुर में श्रेष्ठि गोत्रीय राव जगदेव ने वि.स. 119 में चन्द्रप्रभजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य यक्षदेव सूरि ने की; खतरीपुर में तप्तभट्ट गोत्रीय का विराट संघ निकाला, जिसमें आचार्य यक्षदेव आदि बहुत से साधु साध्वियां थे; विजयपट्टन में बाघनाग गोत्रीय मंत्री सजन ने वि.स. 39 में भगवान महावीर का मंदिर बनाया, जिसकी प्रतिष्ठा यक्षदेव सूरि ने की, जिसमें मंत्रीश्वर ने सवा लाख रूपये खर्च किये; धेनपुर में भाद्रगोत्रीय मंत्री मेहकरण ने वि.सं 309 में आचार्य रत्नप्रभसूरि की अध्यक्षता में तीर्थों की यात्रा के लिये एक संघ निकाला गया, जिसमें यात्रियों की संख्या एक लाख थी; उपकेशपुर में श्रेष्ठिगोत्रीय राव जन्हणदेव ने वि.सं 208 में आचार्य रत्नप्रभसूरि के उपदेश से महावीर मंदिर में अट्ठाई महोत्सव किया; भिन्नमाल नगर में सुचंति गोत्रीय शाह पेथड़ हरराज ने वि.सं 358 में आचार्य श्री देवगुप्तसूरि के उपदेश से भगवान ऋषभदेव का मंदिर बनाया, जिसकी प्रतिष्ठा देवगुप्तसूरि ने की; मांडव्यपुर में कुलभद्रा गोत्रीय शाह नाथा खेमा ने आचार्य सिद्धसूरि के उपदेश से वि.सं 377 में ऋषभदेव के मंदिर का जीर्णोद्धार आचार्य सिद्धसूरि द्वारा करवाया; सालणपुर में श्रेष्ठिगोत्रीय ऊहड़ ने महावीर का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा वि.सं 393 में आचार्य सिद्धसूरि ने की; वि.सं 247 माघसुदि 5 में उपकेशवंशी दूधड़ समरथकाना ने रत्नपुर में महावीर का मंदिर बनवाया; वि.सं 521 में गठिया गोत्रीय शाह देवराज ने आचार्य श्री आदिनाथ का मंदिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य सिद्धसूरि जीने की; वि.सं 531 में कुमट गोत्रे शाह दुर्जनशाल ने आचार्य सिद्धसूरि का पट्टमहोत्सव किया। वि.सं 513 में आदित्यनागगोत्रे चोरडिया शाखा में शाह धरमण साधु मलखनादि ने नागपुर (नागौर) में पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया; वि.स. 589 में बाप्पनागगोत्र शाह वीरमदेव तोला जागरूपादिने शत्रुनादि तीर्थों का संघ निकाला; वि.स. 53 में तप्तभट्ट (तातेड) ने नागपुर (नागौर) में शाह रघुवीर हरचंद ने आचार्य देवगुप्त सूरि ने उपदेश से शत्रुजयादि तीर्थ
1. कल्पसूत्र की कल्पद्रमुकलिका टीका की स्थिरावली
उपकेशगच्छे श्री रत्नप्रभसूरि: येन उसियानगरे कोरंटनगर चसमकालं प्रतिष्ठाकृता रूपद्वयएणेन
चमत्कारश्चदर्शित। 2. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, प्रथम जिल्द, 1146 3. वही, पृ 150
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