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194 पूछा तो सूरिजी ने कहा, आप किसका मंदिर बनाते हैं। मंत्री ने उत्तर दिया, मैं नारायण का मंदिर बनाता हूं । सूरिजी ने कहा, यदि आप महावीर के नाम से मंदिर बनाओ तो एक भी उपद्रव नहीं होगा।'
__यह माना जाता है कि वीर निर्वाणसं 70 माघशुक्ल पंचमी के दिन आचार्य रत्नप्रभसूरि के करकमलों से उपकेशपुर और कोरंटपुर नगर में महावीर मंदिर की प्रतिष्ठा की गई। कोरंटपुर में आचार्य श्री के मायावी रूप ने प्रतिष्ठा की। वीर निर्वाण संवत् 70 में ही आचार्य रत्नप्रभसूरि 500 मुनियों के साथ उपकेशपुर पधारे, इसी वर्ष उपकेशपुर के सूर्यवंशी राजा उत्पलदेव और चंद्रवंशी मंत्री ऊहड़ को जैनधर्म में दीक्षित किया। इसी वर्ष श्रावण शुक्ल प्रतिप्रदा के दिन नूतन जैनों की 'महाजनसंघ संस्था स्थापित की और इसी वर्ष कोरंटपुर के श्री संघ ने कनकप्रभजी आचार्य पद पर आसीन हुए। वीर निर्वाण 77 में महाराजा उत्पलदेव द्वारा पहाड़ी पर बनाए पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा आचार्य रत्नप्रभसूरि और कनकप्रभसूरि के करकमलों द्वारा हुई। वीर निर्वाण संवत् 82 में आचार्य रत्नप्रभसूरिजी ने अपने एक योग्य शिष्य को यक्षदेवसूरि नाम से विभूषित कर आचार्य पद सौंप दिया। वीर निर्वाण 84 की माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन रत्नप्रभसूरि का स्वर्गवास हुआ।
ऐसा माना जाता है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने इस भूमि पर जन्म लेकर अपने कल्याण के साथ अनेक भव्यों का कल्याण किया। इतना ही क्यों महाजन संघ रूपी एक कल्पवृक्ष लगाकर उनकी वंश परम्परा हजारों वर्षों तक चिरस्थायी बना दी। आपने अपने जीवन में 1500 साधु, 3000 साध्वियां और 1400000 घर वाले क्षत्रियों को जैन बनाकर जैनशासन की खूब उन्नति की और मारवाड़ जैसे प्रान्त में जैन मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाकर जैनधर्म की नींव सुदृढ़ बनाकर धर्म को चिरस्थायी बना दिया। मुनिश्री ज्ञानसुन्दर जी महाराज ने ओसवाल समाज का उद्बोधन किया है कि प्रतिवर्ष श्रावण कृष्ण चतुर्दशी के दिन ओसवाल जाति का जन्म दिन का
1. उपकेशगच्छ चरित्र
इतश्च श्रेष्ठी तत्राऽऽस्ते, ऊहड़ कृष्ण मंदिरम् । कारयन्नतुलं नव्यं, पुण्यवान पुण्य हेतवे ।। दिवा बिरचितं देवं, मंदिर राज मंत्रिणा | भिन्नत्वं प्राप्तनुयाद्रात्रौ, ततो विस्मयता गतः ॥ अप्राक्षीद्दा र्शिकान मंत्री, कथ्यतामस्य कारणम् । न कश्चिद्वचे तत्वज्ञः, सत्य सत्य वचस्तदा । ततोऽपच्छन्मनि मन्त्री. कारण चकतांजलिः। प्रत्युवाचतत: सूरि, मन्दिम् कस्य निर्मितम् ।। नाराणस्य यन्त्रीति, प्रो वाचाचार्य मक्षम् । तच्छ्रुत्वा मुनि शार्दूल:, प्रोवाच गिर मुत्तमाम् ।। उपद्रव नेच्छ सिचेन महावीरस्य मन्दिरम् । कारयत्वं हे मन्त्रिन ! मदाज्ञाँ च गृहाणत्वम् ।। मन्त्रिणेवं कृते चैव, नाभूत पुनरूपद्रव । एव मालोक्य लोकास्य, सर्वे वित्मयाताँ गतः ॥ तन्मूल नायक कृते, वीर प्रतिमां नवाम् ।
तस्यैव श्रेष्टिनो धेनोः, वयसा कत्रुर्यामाहणात् ।। 2. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, प्रथम खण्ड, 4 120
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