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वि.सं 1201 में आचार्य जिनदत्तसूरि जी ने ही रूण गांव में सोढा क्षत्रिय वेगा को प्रतिबोधित कर रूण गांव के नाम से रूणवाल गोत्र की स्थापना की।
राठी माहेश्वरी भाभू को रतनपुर में प्रतिबोध देकर खरतरगच्छाचार्य जिनदत्तसूरि ने गोत्र की स्थापना की । रतनपुर में ही राठी माहेश्वरी माल्हदे को प्रतिबोधित कर जिनदत्तसूरि मालू गोत्र की स्थापना की।
आचार्य श्री जिनदत्तसूरिजी ने भाखरी (अजमेर के पास) गांव में गड़वा नामक राठौड़ को प्रतिबोधित कर गड़वाणी गोत्र की। जिनदत्तसूरि जी ने ही पुष्कर में सकलसिंह राठौड़ को प्रतिबोधित कर पोकरणा गोत्र की स्थापना की। पुष्करजी के नाम से यह गोत्र पोकरणा
कहलाया ।
जिनचंद्रसूरि - श्री जिनचंद्रसूरि (वि. सं 397 - 143) ने आछरिया, छाजेड़, मिन्त्री, खजांची, भूगंडी, श्रीमाल, सालेचा, दूगड़ - सूगड़, शेखाणी, कोठारी, आलावत, पोलावत आदि गोत्रों की स्थापना की।
वि.सं 1215 में सिवाना में राठौड़ जाति के कागन को प्रतिबोधित कर छाजेड़ गोत्र की स्थापना की। आचार्य श्री द्वारा मंत्रित वासक्षेप करने से छज्जे स्वर्णमय दिखाई दिये, जिससे छाजेड़ गोत्र का नामकरण पड़ा। काजल से काजलोत छाजेड़ कहलाए ।
वि.सं 1216 में मणिधारी श्री जिनचंद्र सूरि ने देवीकोट में कांधल (पूर्वजाति अज्ञात) को प्रतिबोधित कर खजांची मिनी गोत्र की स्थापना की। ये बोहरे का व्यापार करते थे इसलिये कांधल बोहरा कहलाए। इस परिवार के पुरुष जांजणजी के पुत्र रामसिंह जी को बीकानेर महाराजा खजांची का का सौंपा, इसलिये ये खजांची कहलाए। इस व्यक्ति के एक व्यक्ति ने सिंध ने मूंगड़ी का व्यापार किये, इसलिये मूंगड़ी भी कहलाए।
वि.सं 1217 में आचार्य श्री जिनचंद्रजी ने सियालकोट में दड्या सालमसिंह को प्रतिबोधित कर सालेचा बोहरा गोत्र की स्थापना की।
श्री जिनचंद्रसूरि ने मोहिपुर में गंगसिंह परमार को प्रतिबोधित कर गांग गोत्र की स्थापना की । नारायणसिंह के 16 पुत्र थे । 16 पुत्रों से 16 गोत्र हुए। गंगा के पुत्र गांग, मोहिवाल के वंशज मोहिवाल, गडिया के पुत्र गडिया हुए। ये 16 गोत्र हैं- गांग, पालावत, दुधेरिया, मोहीवाल, गिड़िया (गड़िया), बांभ, गोढवाड़, थरावता, खुरघा, पटवा, गोप, टोडरवाल, भाटिया, आलावत और वीरावत हुए ।
जिनचंद्रसूरि जी के प्रतिबोध से रतनपुर के माहेश्वरी राठी माहेश्वरी और खेतासर गांव के राठी माहेश्वरियों से रीहड़ गोत्र स्थापित हुआ।
जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) - जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) ने वि.सं 1313 में ने संखवाल ग्राम में चौहान कोचरशाह को प्रतिबोधित कर संखलेचा गोत्र की स्थापना की । इन्होंने ही सोलंकी कुमारपाल को प्रतिबोधित कर तिलेरा गोत्र की स्थापना की।
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