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178 नागपुरिया तपागच्छ (ओसवाल संवत् 1528-1574)
इस गच्छ में चन्द्रसूरि, वादिदेवसूरि, पद्मसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि, गुणसुन्दर सूरि, विजयशिखर सूरि आदि महाप्रभाविक आचार्य हुए। इन्होंने लाखों को जैनधर्मी बनाकर महाजन संघ की खूब वृद्धि की। इन श्रावकों की कई जातियां बन गई। - जैसे
1. गोहलाणी, नवलखा, भूतेड़िया। 2. पीपाड़ा, हीरण, गोगड़, शिशोदिया 3. रूलीवाल, बेगाणी।
4. हिगड-लिंगा। 5. रामसोनी।
6. झाबक, झमड़। 7. छलाणी, छजलाणी, घोड़ावल। 8. हीराऊ केलाणी। 9. गोखरू, चौधरी।
10. जोगड़। 11. छोरिया, सामड़ा।
12. लोढा। 13. सूरिया, मीठा। भावहड़ागच्छोपासक गोत्र
डागा, मालू, आघरिया। चित्रवाल गच्छोपासक गोत्र
__ भंडशाली, अलंझड़ा, अरणोदा चित्रवाल। चैत्यवासी गच्छोपासक गोत्र
रवारा, खारीवाल, लूनिया, निबड़िया, मंत्री, सूरमा चैत्यवासी। पीपलगच्छोपासक
पीपला, पीतलिया, सोनगरा। जैनाचार्यों द्वारा प्रतिबोध (अभिलेखों के आधार पर)
शिलालेखों द्वारा जैनाचार्यों के प्रतिबोधित गोत्रों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि सर्वाधिक प्रतिबोधन/उद्बोधन खरतरगच्छाचार्यों ने किया।
वर्द्धमान सूरि- खरतरगच्छ के जनक श्री जिनेश्वर सूरि के गुरु एवं प्राकृत ग्रंथ 'कुवलयमाला' के रचयिता उद्योतनसूरि के शिष्य वर्द्धमान सूरि ने वि.सं 1026 में संचेती गोत्र की, 1072 में लढा माहेश्वरी गोत्र को प्रतिबोधित कर लोढा गोत्र की, संवत् 1972-73 में पीपाड़ नगर में कर्मचंद गहलोत को प्रतिबोधित कर पीपाड़ा गोत्र के उद्भव में योग दिया।
जिनेश्वरसरि- जिनेश्वरसूरि (वि.सं 1061-33) ने श्रीपति ढढा, तिलेरा, भाणसाली गोत्रों की स्थापना की। इन्होंने वि.सं 1076 में दिल्ली में सोनगराचौहान राजाको प्रतिबोधित कर सुचंती (सहचिन्ती) गोत्र की स्थापना की । यति रामलाल जी के अनुसार सुचन्ती गोत्र की
1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, उत्तरार्द्ध, पृ 1503
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