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143 लाघाजी स्वामी- कच्छ गुंदाले ग्राम में जन्मे, सं 1903 में बीकानेर में दीक्षित हुए और संवत् 1963 में आचार्य पद पर विराजे। प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्रज्ञ छोटेलालजीआपके शिष्य रहे।
देवचंदजी स्वामी - सं 1902 में आप कच्छ के समाणिया गांव में जन्में, दंगजी स्वामी से 3 वर्ष की आयु में दीक्षित हुए और संवत् 1977 में स्वर्गवासी हुए।
गुलाबचंद जी महाराज - सं 1921 में मारोला ग्राम में जन्म सं 1988 में आचार्य पद प्राप्त किया। संस्कृत और प्राकृत के आप प्रकाण्ड पण्डित थे।
नागजी स्वामी - नागजी स्वामी विद्वत्ता, गाम्भीर्य और आचार विचार के प्रतिमान थे। लिम्बड़ी में आप दीक्षित हुए और वहीं स्वर्गवासी भी।
रत्नचंदजी महाराज - संवत् 1936 में मारोला कच्छ में जन्में, गुलाबचन्द महाराज के चरणों में अध्ययन किया, अर्धमागधी कोश' बनाकर आगमों के अध्ययन का मार्ग सरल और सुगम बनाया, 'जैन सिद्धान्त कोमुदी' के नाम से प्राकृत व्याकरण तैयार किया और जयपुर में आपको भारतरत्न' की उपाधि दी गई। लिंबड़ी छोटे सम्प्रदाय की परम्परा
हीमचंद जी महाराज - आप मुनि अविचलदास जी के चरणों में दीक्षित हुए। आपका जन्म वणिक श्रीमाली के घर हुआ। वि.सं 1875 में आपने पंच महाव्रत धारण किये। आपका स्वर्गवास वि.सं 1929 को हुआ और आपके पट्ट पर गोपालजी स्वामी नाम के आचार्य
गोपालजी स्वामी - ब्रह्मक्षत्रिय वंशी घर में आप वि.सं 1886 में जन्में, 10 वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए, सूत्रों का गहन अध्ययन किया और वि.सं 1940 में स्वर्गवासी हुए।
मोहनलाल जी स्वामी - ओसवाल कोठारी परिवार में आप घोलेटा में जन्मे, वि.सं 1938 में दीक्षित हुए और आपकी लेखन शक्ति प्रबल थी।
मणिलाल जी स्वामी - वि.सं 1946 में आप धोलेरा में दीक्षित हए, 'प्रभुवीर पट्टावली' जैसा ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की, अजमेर के साधु सम्मेलन में शांतिरक्षक बने और वि.सं 1886 में स्वर्गवासी हुए। आपके सम्प्रदाय में उत्तमचंद जी महाराज और केशवलाल जी महाराज हुए। गोंडल सम्प्रदाय
पूज्य डूंगरशी स्वामी - आप गोंडल सम्प्रदाय के आद्य संत थे। आपका जन्म सौराष्ट्र के मेंदारण्डा ग्राम में हुआ। 25 वर्ष की आयु में पंचमहाव्रत धारण किया, वि.सं 1845 में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और प्रख्यात सेठ सौभागचंद्र जी आपके शिष्य थे। आपका स्वर्गवास गोंडल में संवत् 1877 में हुआ।
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