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141 अप्रकाशित है। आपने 'जैनधर्म का मौलिक इतिहास' (चारखण्ड) लिखकर जैन इतिहास के लेखन में कीर्तिमान स्थापित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐतिहासिक काल के तीन तीर्थंकर' और 'जैन आचार्य चरितावली' जैन इतिहास को अमूल्यसामग्री प्रदान करती है । इसके अतिरिक्त आपके प्रवचन, पद, भजन, कथा-कहानियां आदि भी प्रकाशित हुए हैं। अनेक धार्मिक और शिक्षण संस्थाओं के आप प्रेरकसूत्र रहे।
आचार्य हस्तीमल जी के उत्तराधिकारी आचार्य हीराचंद जी म.सा. ने आचार्य हस्तीमलजी को जैन जगत की आलोकमय भास्कर कहा।' उपाध्याय मानचंद जी ने महाकल्प वृक्ष; श्री ज्ञानमुनि ने इनके जीवन को जाज्ज्वल्यमान माना।' डा. सम्पतसिंह भाण्डावत ने संयम साधन, शुद्ध सात्विक साधु मर्यादा, विशिष्ट ज्ञान और ध्यान के श्रृंग, रत्नऋय-सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यचारित्र्य- आराधना में लीन समाधिस्थ योगी और आध्यात्मिकता के गौरव शिखर कहा। प्रो. कल्याणमल लोढा में आचार्य श्री को श्रमण संस्कृति का उज्ज्वल प्रतीक कहा। प्रो. लोढा के अनुसार उनका जीवन जिन सत्संकल्पों और आदर्शों से परिपूर्ण रहा, जिसमें कोमलता, करुणा का अजम्र प्रवाह बहता रहा- साधना के उच्चतम सोपान आते रहे-गुणों और लेश्याओं का तेज स्वत: खुलता रहा और लोक जीवन की नैतिक मर्यादाओं से हमें निस्तारण करने की अनवरत समीक्षा रही- वही तो सच्चा गुरु और आचार्य था।'
किसी ने प्रज्ञापुरुष कहा, किसी ने फक्कड़ संत', किसी ने धैर्य और भव्यता की मूर्ति , किसी ने युगान्तकारी विरल विभूति', किसी ने सरस्वती पुत्र, किसी ने ज्ञान का शिखर और साधना का श्रृंग", किसी ने जैनमत का दैदीप्यमान नक्षत्र, किसी ने इतिहास मनीषी और किसी ने श्रमणसंस्कृति का गौरव कहा।
वस्तुत: आचार्य प्रवर का सम्पूर्ण जीवन मानव संस्कृति और समाज की मूल्यात्मक चेतना को, उसकी नैतिक अर्थवत्ता को, स्वस्थ मानसिकता को जागृत करने के लिये समर्पित था।
1. जिनवाणी, आचार्य श्री हस्तीमल म.सा. श्रद्धांजलि विशेषांक, पृ17
वही, पृ19 3. वही, पृ4 4. जिनवाणी, आचार्य हस्तीमलजी म.सा. व्यक्तित्व एवं कृतित्व विशेषांक, पृ16 5. वही, पृ29-30 6. जिनवाणी, श्रद्धांजलि विशेषांक, अपनी बात, 7. वही, पृ30 8. वही, पृ66 9. वही, पृ67 10. वही, पृ 131 11. वही, पृ135 12. वही, पृ149 13. वही, पृ164 14. प्रो. कल्याणमल लोढा, जिनवाणी, श्रद्धांजलि विशेषांक, मई, जून, जुलाई 91, पृ46
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