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आपको गोद लिया । वि.सं 1948 में गुमानचंद जी महाराज के पास आप दीक्षित हुए। आपने आगमों का गम्भीर अध्ययन किया। आपने हजारों जैनेत्तरों को जैनधर्म की दीक्षा दी। 1 सं 1902 में आप स्वर्ग प्रयाण कर गये ।
आचार्य हमीरमत जी - ओसवंशीय गांधी गोत्रीय श्रेष्ठि नगराज जी के यहां नागौर में जन्मे । सं. 1863 में आचार्य रत्नचंद जी को भगवती दीक्षा दी। वे अपने युग के आदर्श संत माने जाते थे। संवत् 1902 में आप आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। 61 वर्ष की आयु में आपका समाधिमरण हुआ ।
आचार्य कजोडीमल जी आचार्य रतन्चंद जी की परम्परा के तृतीय पट्टधर थे । आपका जन्म किशनगढ़ के ओसवंशीय श्रेष्ठि शकुनलाल के घर हुआ। दीक्षा के समय विराधे के कारण से 1887 में न्यायाधीश की अनुमति से भगवती दीक्षा ग्रहण की। आप संवत् 1910 में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। आपके शासनकाल में 13 मुनि दीक्षाएं और 49 चातुर्मास हुए ।
आचार्य विनयचंद जी का फलौदी के ओसवंशीय पूंगलिया गोत्रीय श्रेष्ठि प्रतापमल के यहाँ संवत् 1897 में जन्म हुआ। संवत् 1912 में आपने कजोड़ीमल जी भगवती दीक्षा ग्रहण की। आप सवंत् 1937 में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। आपकी आगम मर्यद्दता एवं सम्रण शक्ति विलक्षण की। आपका स्वर्गवास संवत् 1772 को हुआ।
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शोभाचंद जी महाराज - पूज्य रत्नचंद जी महाराज के चौथे पट्ट पर आप आचार्य रूप में विराजे । आपका जन्म वि.सं 1914 में जोधपुर में हुआ। 13 वर्ष की अवस्था में कजोड़ीमल जी महाराज के श्रीचरणों में आप दीक्षित हुए। सं 1972 में चतुर्विध श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद प्रदान किया। आप संवत् 1983 में समाधिमरण को प्राप्त हुए ।
आचार्य श्री हस्तीमल जी म. सा. - श्री रत्नचंद जी महाराज की आचार्य परम्परा श्री कुशल जी महाराज से प्रारम्भ हुई थी, किन्तु सम्प्रदाय का नामकरण रत्नचंद्र जी महाराज के नाम पर रत्नवंश पड़ा। इस वंश में नवें पाट पर शोभाचंद जी महाराज के शिष्य हस्तीमलजी म.सा. वि.सं 1967 पौष शुक्ल चतुर्दशी को पीपाड़ सिटी में ओसवंशीय केवलचंद जी बोहरा के यहाँ श्रीमती रूपकुंवर की कुक्षि से जन्मे । वि.सं 1977 माघ शुक्ला द्वितीय के अजमेर में आचार्य श्री शोभाचंद जी महाराज ने दीक्षा दी और वि. स. 1987 को आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए । आपने देश के विविध क्षेत्रों- राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में जैनमत की अलख जगाई । आपने 31 संत और 54 साधुओं को दीक्षित किया। आपका समाधिमरण वि.स. 2048 को प्रथम वैसाख शुक्ला अष्टमी को हुआ ।
आचार्य हस्तीमलजी महाराज ने नन्दीसूत्र, वृहतकल्पसूत्र, अन्तः कृदृदशासूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक सूत्र की टीकाएं लिखी। आपकी 'तर्त्वाथसूत्र' पर लिखी टीका
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