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2. मुनि श्री अमरचन्दजी महाराज
3. मुनि श्री अमोलकचन्दजी महाराज
4. मुनि श्री श्रीचन्दजी महाराज
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1. गोंडल मोटो संप्रदाय
2. गोंडल संघाणी संप्रदाय
3. बरवाला संप्रदाय
4. कच्छ आठ कोटी नानी पक्ष
निम्नांकित सम्प्रदाय के साधुओं ने भाग नहीं लिया
1. जैन धर्म का इतिहास, पृ496 2. जैन धर्म का इतिहास, पृ469 3. ओसवाल, दर्शन, दिग्दर्शन, पृ 173
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तेरापंथी परम्परा
धर्मदास जी की आचार्य परम्परा में श्री रघुनाथ जी के श्रीचरणों में आचार्य श्री भीषण जी ने संवत् 1808 में दीक्षित हुए। आचार्य भीषणजी कुछ मान्यताओं पूज्य रघुनाथजी से सहमत हो सके । ये देखकर उन्होंने भीषणजी को संघ से पृथक् कर दिया। भीषणजी ने अन्य 12 साधुओं (कुल तेरह) के पास बगड़ी (मारवाड़) में अलग परम्परा खड़ी कर दी।' आचार्य भीषण ही आचार्य भिक्षु कहलाए । 'पाँच महाव्रत, पांच समिति और तीन मुनि ही' तेरापंथ के साध्वाचार हैं।' आचार्य भिक्षु का उद्देश्य था - साधु-साध्वियां परस्पर सौहार्द व स्नेह में रहे, आचार्यनिष्ठ रहे, संघ में अनुशासन और मर्यादा रहे। इस संघ की विशेषता है कि इसमें एक ही आचार्य है। आचार्य श्री भिक्षु - आप संवत् 1783 में कंठालिया (मारवाड़) में जन्मे । ओसवाल संखलेचा गोत्र में जन्मे भीषणजी ने संवत् 1816 में तेरापंथ की स्थापना की। आपका स्वर्गवास सं 1860 में हुआ । विपरीत परिस्थितियों में आचार्य भिक्षु डटे रहे। आपने 38000 श्लोक प्रमाण साहित्य का सृजन किया ।
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