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गणेशजीस्वामी- राजकोट के पास खेरड़ी ग्राम आपकी जन्मभूमि थी और आपका समाधिकरण वि.सं 1866 में हुआ।
खोडाजी स्वामी - मूलजी स्वामी के शिष्य पूज्य डोलाजी स्वामी के चरणों में आप संवत् 1908 में दीक्षित हुए। आप सुकवि और गायक थे।
पूज्य जसाजी महाराज - आप राजस्थान में जन्में, किन्तु गुजरात-सौराष्ट्र में प्रसिद्ध हुए। आप वि.सं. 1907 में दीक्षित हुए। आपके गुरुभाई हीराचंद जी स्वामी के शिष्य देवजी स्वामी हुए। इनकी सेवा में अंबा जी स्वामी हुए। अंबाजी स्वामी के शिष्य भीमजी स्वामी हुए। इनके शिष्य क्रमश: नेणजी स्वामी, देवजी स्वामी, जयचंदजी स्वामी और मणिकचंद जी स्वामी हुए।
जयचंदजी स्वामी - श्रीमाली सेठ प्रेमजी भाई के घर में जैतपुर में आपका जन्म संवत् 1906 में हुआ। मेंढणा ग्राम में आप 32 वर्ष की आयु में दीक्षित हुए। अनेक शिक्षण संस्थाओं के जन्मदाता मुनि प्राणलाल जी जैसे मुनिराज आपने ही स्थानकवासी समाज को भेंट
दिये।
माणकचंद जीमहाराज- आपकाआगम ज्ञान विस्तृत था।योग में प्रवीण माणकचंद जी अनेक शिक्षण संस्थाओं के प्रेरणा स्रोत बने । सौराष्ट्र के मुनियों में आप अग्रगण्य माने जाते
हैं।
नागजी स्वामी की परम्परा
बालजी स्वामी के शिष्य नागजी स्वामी ने वि.सं 1872 में इस परिवार की स्थापना की। ज्योतिष शास्त्रज्ञ मेघराज जी और लोकप्रिय प्रवचनकर्ता पूज्य संघजी आपके ही परिवार में हुए।
उदयसागर जी महाराज - जोधपुर में उदयसागर जी का जन्म हुआ। आपने संवत् 1897 में भगवती दीक्षा ग्रहण की। आप जाति सम्पन्न, कुल सम्पन्न, शरीर सम्पन्न, वचनसम्पन्न
और वाचनासम्पन्न प्रभावशाली आचार्य हुए। मुनि चौथमल जी को आचार्व प्रदान कर संवत् 1954 में रतलाम शहर में आपका स्वर्गवास हुआ।
चौथमल जी महाराज - आपका जन्म पाली (राजस्थान) में हुआ। आप शिथिलाचारिता के घोर विरोधी थे।
श्रीलाल जी महाराज - आपका जन्म टोंक (राजस्थान) में हुआ। आपके आचार्यत्व में सम्प्रदाय की कीर्ति में अभिवृद्धि होने लगी। 51 वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हुआ।
शास्त्रविशारद मुन्नालाल जी महाराज - लालजी महाराज के पश्चात् यह सम्प्रदाय दो भागों में बँट गया। आप आचार्य मुन्नालाल प्रकृति से नम्र और शास्त्रों के परम मर्मज्ञ थे। अधिकांश सूत्र आपको कंठस्थ थे। आप ब्यावर में स्वर्ग सिधारे ।
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