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एक जीवन्त धर्म था। जैन परम्परा के अनुसार विक्रमादित्य स्वयं जैन हो गया था। जैन ग्रंथों के अनुसार अजमेर और पुष्कर के बीच में हर्षपुरा में करीब 300 जैन मंदिर थे, किन्तु इतिहास में हर्षपुरा के नाम का अस्तित्व विद्यमान नहीं है। श्रवणवेलगोला के एक लेख के अनुसार सामंतभद्र दूसरी शताब्दी में जैनमत के प्रचार के लिये मालवा गया था, जो दक्षिणी पश्चिमी राजस्थान का एक अंग था। ह्वेनसांग ने स्वीकार किया है कि जैनमत का प्रचार तक्षशिला से सुदूर दक्षिण तक था। सातवीं शताब्दी के वसतगढ़ मंदिर से यह पता चलता है कि उस समय राजस्थान में जैनमत का अस्तित्व था। आठवीं और नवीं शताब्दी में हरिभद्र सूरि के प्रयत्नों से इस धर्म का राजस्थान में खूब प्रसार हुआ।
मुस्लिम यात्रियों ने आठवीं नवीं शताब्दी में राजस्थान में जैनमत का अस्तित्व स्वीकार किया है। कई ने बौद्ध मूर्तियों और जैन मूर्तियों के बीच भेद नहीं किया और जैन मूर्तियों को बौद्ध मूर्तियां मान लिया। यही गल्ती आगे चलकर यूरोपियनों ने की। अबजैदुल ने जिन नग्न साधुओं का वर्णन किया, वे बौद्धभिक्षु न होकर जैन साधुथे। जैनमत का अत्यधिक विकास राजपूत काल में हुआ, वे सहनशील थे और जैनमत के प्रसार में पूर्ण सहयोग दिया। प्रतिहारों के समय में जैनमत का अच्छा समय था। ओसिया में वत्सराज ने महावीर मन्दिर का निर्माण करवाया। 783 ई में जिनसेन ने अपने इस शासक का उल्लेख हरिवंशपुराण' में किया है। इसको उत्तराधिकारी नागभट्ट 792 ई. में शासक बना, जो जैन साधु बप्पभट्ट सूरि का प्रशंसक था और इसके आदेश से इसने अनेक स्थानों पर जैन मंदिर निर्मित करवाए। 840 ई में मिहिरभोजशासक बना जो, गोविन्दसूरि से प्रभावित था। कुक्कुक मण्डोर का प्रतिहार शासक था। यह संस्कृत का विद्वान और जैनमत का संरक्षक था । घटियाला शिलालेख के अनुसार इसने 861 ई. में एक जैनमंदिर का निर्माण
1. Jain Journal, April 63, Page 201
During the region of Vikramaditya, the Malwa Republic was a part of South East Rajasthan & Jainism was a living religion in western India. According to Jain tradition vikramaditya himself became a
Jain. 2. वही, पृ201
It is known from Huen Tsang"s account that Jainism was practised
from Taxila to the extreme south. 3. वही, पृ. 202
In the Vasatgarh temples there is an image of the 7th century A.D. This supports the existence of Jainism in Rajasthan in this century. In the 8th & 9th centuries this religion became widespread in
Rajasthan by the efforts of noted Haribhadra Suri. 4. वही, पृ202
We know of the existence of Jainism in the 8th & 9th Centuries
from Muslim Travellers. 5. वही, पृ203
Jainism had a good time under the Pratihars. There is a Mahavira
Temple at Osia, that was built by Vatsraja. 6. वही, पृ203
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