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प्रथम वाचना- पाटलिपुत्र वाचना
मौर्य सेनापति पुष्यमित्र के अत्याचारों से तंग आकर मगध जैनधर्मावलम्बी जनता की पुकार सुनकर भिक्खुराय खारवेल ने मगध पर आक्रमण कर पुष्यमित्र को दो बार पराजित किया । भिक्खुराय ने श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं को एकत्रित कर आगमों का उद्धार करने के लिये पूर्वज्ञान का संकलन, संग्रह और पुनरुद्धार करवाया। अंग शास्त्रों के संकलन, संग्रह और संरक्षण हेतु खारवेल द्वारा कराए गये संघ सम्मेलन का समय वीर निर्वाण संवत् 323 के पश्चात् 327 से 329 वीर संवत् ठहरता है। पुष्यमित्र 323 वीर निर्वाण संवत् में पाटलिपुत्र के सिंहासन पर आरूढ हुआ। खारवेल के शिलालेख में स्पष्ट अंकित है कि जैन धर्म के परमपोषक कलिंगराज महामेघवाहन भिक्खुराय खारवेल को पुष्यमित्र द्वारा जैनों पर किये गये अत्याचारों की सूचना मिली, तो उसने राज्यकाल के आठवें वर्ष में पाटलिपुत्र पर एक बड़ी सेना लेकर आक्रमण कर दिया।' यह सम्भव है उस समय संधि हो गई और चार वर्ष पश्चात् उसने फिर पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया।
'हिमवंत स्थिरावली' के उल्लेखानुसार आगम् वाचनार्थ आयोजित सम्मेलन में वाचनाचार्य आर्य बलिहस्स भी सम्मिलित थे। आर्य बलिहस्स का वाचनाचार्यकाल वीर निर्वाण संवत् 245 से 327-329 तक था।
द्वितीय वाचना- माथुरी वाचना
वाचक वंश परम्परा में आर्य स्कन्दिल बड़े प्रभावशाली और प्रतिभाशाली आचार्य हो गये हैं । 'हिमवंत स्थिरावली' के अनुसार मथुरा के ब्राह्मण परिवार में आर्य स्कन्दिल जन्मे और इनके माता पिता प्रारम्भ से ही धर्मावलम्बी थे। मुनि स्कन्दिल ने गुरु आर्य ब्रह्मदीपक सिंह की सेवा में रहकर आगमों का ज्ञान प्राप्त किया। गुरु के स्वर्गगमन के पश्चात आर्य स्किन्दल वाचनाचार्य नियुक्त हुए।आर्य स्कन्दिल का कार्यकाल वीर निर्वाण से 823 से 840 के आस पास है । संक्रातिकाल में श्रुतधरों की संख्या अति न्यून हो गई थी। फलतः आगम विच्छेद की स्थिति उत्पन्न हो चुकी थी। अति विकट समय में सुभिक्ष होने पर वीर निर्वाण संवत् 930 से 840 के मध्य स्किन्दल सूरि ने उत्तर भारत के मुनियों को मथुरा में एकत्रित कर आगम वाचना की । पट्टावली समुच्चय के अनुसार, “सुभिक्ष के समाप्त होने पर आर्य स्कन्दिल सूरि ने श्रमण संघ को मथुरा में एकत्रित कर अनुयोग किया | 2
1. कलिंग का शिलालेख
आमे च बसे महता सेना - गोरधगिरि घाताणयिता राजगहं उपपीड़ाययति एतिनं च कंमापदान संनादेन संवितसेनवाहनो तिणमुचित मधुर अपयातो यवनराज डिमित ।
2. पट्टावली समुच्चय, परिशिष्ट
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दुब्भिवक्खम्मि पण पुणरवि मिलित समणसंघाओ । भिहुराए अणुओगो, पतइयो खंदिलो सूरि ।।
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