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85 पश्चात् जिनशासन विभक्त हुआ और जिन साहित्य की सुरक्षा और निर्माण की चिन्ता ने श्रुतधरोंश्रुतप्रेमियों को आन्दोलित किया।
संघभेद से श्वेताम्बर सम्प्रदाय का अंकुरण हुआ और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मुनि और आचार्य ओसवंश के प्रेरक और सूत्रधार बने। आगमवाचना
महावीर युग (भद्रबाहु तक) के पश्चात् संघभेद हुआ, किन्तु भद्रबाहु से लेकर देवाद्धि क्षमाश्रमण तक के युग को हम आगम वाचनाकाल भी कह सकते हैं।
आर्य स्थूलभद्र के दो प्रमुख और पट्टधर शिष्यों- आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती में आर्य महागिरि बड़े थे, इसलिये आर्य महागिरि की शाखा प्रमुख शाखा मानी जानी चाहिये। आर्य महागिरि के पश्चात् वाचक वंश परम्परा दी जा रही है -
आर्य महागिरि आर्य सुहस्ति आर्य बलिस्सह आर्य स्वाति आर्य शांडिल्य आर्य समुद्र आर्य मंगु आर्य धर्म आर्य भद्रगुप्त आर्य वज्र आर्य रक्षित आर्य आनन्दिल आर्य नागहस्ती आर्य रेवती नक्षत्र आर्य ब्रह्मदीपक सिंह आर्य स्कन्दिलाचार्य आर्य हिमवंत आर्य नागार्जुन आर्य गोविन्द आर्य भूतादिन आर्य लोहित्य आर्य दृष्टगणि आर्य देवाद्धि क्षमाश्रमण
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