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'नन्दिस्थिरावली' में आर्य स्कन्दिल को प्रणाम किया है- जिनके द्वारा संगठित सुव्यवस्थित अनुयोग (आगम पाठ) आज भी भरत क्षेत्र में प्रचलित है, उन महान् यशस्वी आर्य स्कन्दिल को प्रणाम करता हूँ।
उस समय जिस जिस स्थविर को जो जो श्रुत पाठ स्मरण था, उसे सुन सुनकर स्कन्दिलाचार्य ने सर्वानुमति से सुनिश्चित किया। यह वाचना मथुरा में हुई, इसलिये इसे माथुरी वाचना कहते हैं।
यह भी कहा जाता है कि मथुरा निवासी ओसवंशीय पोलाक ने गंधहस्ती के विवरण सहित उन सूत्रों को ताड़पत्रादि पर लिखाकर मुनियों को प्रदान किया। तृतीय वाचना- वलभी वाचना
जिस समय मथुरा में आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम वाचना हुई, लगभग उसी समय दक्षिण के श्रमणों को एकत्रित कर आचार्य नागार्जुन ने भी वलभी में एक आगम वाचना की।
दोनों वाचनाओं में भेद है। आगमों का उद्धार करने के पश्चात् आर्य स्कन्दिल और आर्य नागार्जुन नहीं मिल सके। उनका स्वर्गवास हो गया। जो वाचनाभेद रह गया, वह वैसा ही बना रहा। विस्मृत सूत्र और अर्थ को याद करके व्यवस्थित करने में वाचनाभेद हो जाना अवश्वम्भावी है।
हिमवंत क्षमाश्रमण के पश्चात् आर्य नागार्जुन वाचनाचार्य हुए। आर्य नागार्जुन क्षत्रिय संग्रामसिंह के पुत्र थे। वीर संवत् 840 के लगभग वाचनाचार्य आर्य स्कन्दिल के स्वर्गस्थ होते ही ज्येष्ठ मुनि हिमवान् को वाचनाचार्य नियुक्त किया गया और हिमवान् के स्वर्गगमन के पश्चात् आर्य नागार्जुन को युगप्रधानाचार्य के कार्यभार के साथ वाचनाचार्य के पद पर भी प्रतिष्ठित किया गया।
देवद्धि क्षमाश्रमण ने भी वलभी नगरी में श्रमणसंघ का सम्मेलन आयोजित किया। उन्होंने न केवल आगम वाचना द्वारा द्वादशांगी के विस्मृत पाठों को सुव्यवस्थित, संकलित एवं सुगठित ही किया, किन्तु पुस्तकों के रूप में लिपिबद्ध करवाकर दूरदर्शिता का परिचय दिया।
देवद्धि जन्मत: काश्यपगोत्रीय क्षत्रिय थे। देवर्द्धि क्षमाश्रमण ने श्रमणसंघ की अनुमति से वीर निर्वाण संवत् 980 में वलभी में एक महासम्मेलन किया और आगम वाचना के माध्यम से
1. नन्दी स्थिरावली, श्लोक 33
जेसिमिमो अणुओगो पयरइ अज्जावि अडभरहाम्मि।
बहुनयरनिग्गय जसे ते वंदे खंदिलाथरिए । 2. हिमवंत स्थिरावली
मथुरा निवासिना श्रमणोपासक वरेण ओसवंशि भूपणेन पोलाकामिधेन तत्सकलमपि प्रवचनं गंधहस्ति कृत विवरणोपेतं तालयत्रा देषु तेखयित्वा भिक्षुभ्यः स्वाध्यायार्थ समर्पितम् ।।
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