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82 आवश्यक बताए हैं।
'स्थानांग सूत्र'' में वस्त्र धारण करने के तीन कारण बतलाए गए हैं- लज्जा निवारण, ग्लानि निवारण और परीषह निवारण ।
_ 'उत्तराध्ययन' की एक कथा के अनुसार आचार्य आर्यरक्षित ने अपनी माता, भार्या, भगिनी आदि सभी स्वजनों को साध्वी बना दिया, किन्तु उसके पिता ने समझाने पर भी लज्जावश साधुपद स्वीकार नहीं किया। वह कहता- मैं कैसें श्रमण बनूं ? जब आचार्यों ने बहुत कहा तो बोला- यदि मुझे दो वस्त्र, कमण्डल, छत्र, जूता और यज्ञोपवीत के साथ प्रवर्जित कर सकते हो तो से मैं साधु बनने को तैयार हूँ।
एक दिन आचार्य साधु संघ के साथ चैत्य वन्दना के लिये गये। तब पहले से सिखाकर तैयार किये गये बालकों ने कहा, “इस छाते वाले साधु के सिवाय हम सब साधुओं की वन्दना करते हैं।" वह वृद्ध बोला, “इन्होंने मेरे पुत्र-पौत्र सब की वन्दना की, मेरी वन्दना नहीं की। क्या मैंने दीक्षा नहीं ली।" तब बालक बोले- “दीक्षा ली होती तो छाता कमण्डल वगैरह तुम्हारे पास कैसे होते ?" वृद्ध ने आचार्य से कहा- “पुत्र। बालक भी मेरी हंसी उड़ाते हैं । मैं छाता नहीं रखूगा। इसी तरह प्रयत्न करके धोती के सिवाय सब चीजों का त्याग वृद्ध से करा दिया गया।"
___ इन्ही आर्यरक्षित के स्वर्ग के पश्चात् श्वेताम्बर सम्प्रदाय में धीरे धीरे उपाधियों की संख्या में वृद्धि होती गई। मुनि कल्याण विजय जी के अनुसार “आर्यरक्षित के स्वर्ग के पश्चात् धीरे धीरे साधुओं का निवास बस्तियों में होने लगा और साथ ही नग्नता का भी अन्त होने लगा। पहले मात्र शरीर का गुह्य अंग ही ढंकने का विशेष खयाल रहता था, बाद में सम्पूर्ण नग्नता ढंक लेने की जरूरत समझी गई और उसके लिये वस्त्र का आकार प्रकार भी बदलना पड़ा।"2
कुछ विद्वानों का मत है कि महावीर ने अचेलकता को अपनाया, उस पर उनके शिष्य और बाद में आजीविक सम्प्रदाय के गुरु मक्खाल गोशाल का प्रभाव है। यह मंखपुत्र गोशाला में जन्मा था। ऐसा माना जाता है कि गोशालक छः वर्षों तक उनके हाथ रहा।
श्वेताम्बर आगमों के अनुसार महावीर केवल एक वर्ष तक चीवरधारी रहे थे। अत: जब गोशालक ने उन्हें देखा, तब अवश्य ही नग्न होने चाहिये। इसके विपरीत गोशालक के पास उस समय वस्त्र कमण्डल आदि उपकरण थे, जिन्हें उसने महावीर का शिष्य बनने से पूर्व किसी ब्राह्मण को दे दिये। गोशालककी नग्नता का प्रभाव महावीर पर प्रतीत नहीं होता, किन्तु महावीर की नग्नता वे प्रभावित गोशालक ने अपने आजीविक सम्प्रदाय के साधुओं को नग्न रहने का नियम बनाया।
1. स्थानांग सूत्रं, 171 सूत्र
तिहिं ठाणेहिं वत्थं धरेज्जा। तं.- हिरिपात्तियं, दुगंधापत्तियं परीषहणत्तियं 171 सूत्र 2. मुनि कल्याण विजय, श्रमण भगवान महावीर, पृ292 3. भगवतीसूत्र, 151
साडिआओ य पाडिआओ य कुंडियाओ य वित्तफलगं च माहणे आयामेई। 4.जैन साहित्य का इतिहास, पृ429
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