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। वस्तुत: गहराई से देखा जाय तो पार्श्वनाथ के चतुर्याम धर्म और महावीर के पंचयाम में तत्वत: कोई मौलिक भेद नहीं है।
72 वर्ष की अवस्था में बिहार प्रदेश के पटना जिले के अन्तर्गत पावा नामक स्थान पर भगवान महावीर ने मुक्तिलाभ किया। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भगवान महावीर का उपदेश सुनने के लिये विभिन्न देशों के राजा पावा में पधारे। भगवान महावीर ने एकत्र जनसमूह को 6 दिन तक उपदेश दिया। सातवें दिन रात्रि के समय रातभर उपदेश दिया। जब रात्रि के पिछले पहर में सब श्रोता नींद में थे, तब भगवान महावीर पर्यांकसन से शुक्ल ध्यान में स्थित हो गये। जैसे ही दिन निकलने का समय हुआ, महावीर प्रभु ने निर्वाण लाभ किया। जब मनुष्य जागे तो उन्होंने देखा किवीर प्रभु निर्वाण लाभ कर चुके हैं, उस समय गौतम गणधर के सिवाय, उनके सभी शिष्य उपस्थित थे।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्नीस वर्ष, पाँच मास और बीस दिन पश्चात् कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन स्वाति नक्षत्र के रहते हुए रात्रि के समय निर्वाण को प्राप्त हुए।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को स्वाति नक्षत्र के रहते हुए रात्रि के पिछले प्रहर में महावीर का निर्वाण हुआ।
विक्रम संवत् के 470 वर्ष पहले तथा ईस्वी सन् से 527 वर्ष पहले भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। डा. हर्मन जेकोबी इस मत के सहमत नहीं है। इनके अनुसार महावीर के निर्वाण के 470 वर्ष पश्चात् जिस विक्रम राजा होने का उल्लेख है, उसका इतिहास में कोई अस्तित्व नहीं है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बुद्ध का निर्वाण ईस्वी सन् के 570 वर्ष पूर्व हुआ था। बुद्ध की अवस्था निर्वाण के समय 80 वर्ष थी। यदि जैन गाथाओं के अनुसार ई.पू. 527 वर्ष में हुआ होता तो उस समय बुद्ध की आयु 30 वर्ष होनी चाहिये, परन्तु यह सब मानते हैं कि 36 वर्ष की उम्र के पहले बुद्ध को बोधिलाभ नहीं हुआ था। ऐतिहासिक उल्लेखों के अनुसार अजातशत्रु बुद्ध के निर्वाण से 8 वर्ष पूर्व राजगद्दी पर बैठा और उसने 32 वर्ष तक राज्य किया था। अब यदि उक्त जैन गाथाओं के अनुसार महावीर का निर्वाणकाल माना जाता है तो उक्त बात घटित नहीं होती। महावीर का निर्वाणकाल कल्पित है, अतः उसमें 60 वर्ष कम करना चाहिए।'
यह माना जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य महावीर के निर्वाण से 219 वर्ष पश्चात् और बुद्ध निर्वाण से 218 वर्ष पश्चात् गद्दी पर बैठा। इस तरह जैनों की काल गणना के अनुसार चन्द्रगुप्त ईस्वी सन् से 326 या 325 वर्ष पूर्व गद्दी पर बैठा।
जार्ल कार्पेण्टिर ने महावीर के निर्वाण के संवत् के विषय में शंका की। उसके पश्चात् स्व काशीप्रसाद जायसवाल ने महावीर ओर बुद्ध के निर्वाण की विद्वत्तापूर्वक विवेचना की।उन्होंने 18 वर्ष की भूल बताकर वीर निर्वाण संवत् में 18 वर्ष बढाने का सुझाव दिया।
जुगलकिशोर मुख्तार ने इस संदर्भ में जायसवाल के 18 वर्ष बढाने से और इसकी और जार्ल चापेंटियर के 80 वर्ष घटाने के सुझाव को सदोष बताकर प्रचलित वीर निर्वाण संवत् को ही ठीक ठहराया। इसके पश्चात् मुनि कल्याणविजय जी ने भी एक निबन्ध लिखकर वीर
1. जैन साहित्य का इतिहास
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