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समान निस्संग, सूर्य के समान तेजस्वी, सागर के समान गम्भीर, मेरु के समान निश्चल, चन्द्रमा के समान शीतल, मणिके समान कांतिमान, पृथ्वी के समान सहिष्णु, सर्प के समान अनियत आश्रयी,
और आकाश के समान निरवलम्ब साधु परमपद मोक्ष की खोज में रहते हैं। केवल सिर मुंडाने से श्रमण नहीं होता, ओम का जाप कहने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुशचीवर पहनने से कोई तपस्वी नहीं होता। वह समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है।
भगवान महावीर ने तत्वज्ञान का उपदेश दिया। महावीर ने कहा जहाँ न दुख है न सुख, न पीड़ा है न बाधा, न मरण है न जन्म, वही निर्वाण है। जहाँ इंद्रियाँ है न उपसर्ग, न मोह न विस्मय, न निद्रा है न तृष्णा और न भूख है, वहीं निर्वाण है।'
महावीर स्यादवाद के व्याख्याता थे। महावीर ने कहा दूध और पानी की तरह अनेक विरोधी धर्मों द्वारा परस्पर घुले मिले पदार्थ में यह धर्म और वह धर्म का विभाग करना उचित नहीं। जितनी विशेष पर्याय हों, उतना ही अविभाग समझना चाहिये। स्यात अस्ति, स्यातनास्ति, स्यात् आस्तिनास्ति, स्यात् अवक्तव्यं, स्यात आस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्यं, स्यात् आस्तिनास्ति अवक्तव्यं-इन्हें प्रमाण सप्तमंगी जानना चाहिये।'
1. समणसुत्तं पृ 108-109
सीह-गय-वसह-मिय-पसु, मारुद-सुरूवति-मंदरिहु-मणी।
खिदि- उरगंवरसरिसा, परम-पय-विमग्गया साहू ।। 2. वही, पृ30-31
न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो ।
न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण त तावसो । 3. वही, पृ30-31
समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो ।
नाणेण य मुणी होइ, तवणे होइ तावसो । 4. वही, पृ196-197
णवि दुक्खं णवि सुक्खं, णवि पीड़ा णेव विजदे बाहा।
णवि मरनं णवि जणणं, तत्थेव य होय णित्वाणं ।। 5. वही, पृ 196-197
णवि इंदिय उवसग्गा, णवि मोहो विम्हयो ण वणिद्दाय ।
णयण्हा णेव भुहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं । 6. वही, पृ214-255
अनोनाणु गयाणं, इमं वतं व तं व 'विभयणमजुतं ।
जह दुद्धपाणियाणं, जावंत विसेसपज्जाया ।। 7. वही, पृ230-231
अस्थि त्ति णत्थि दो विय, अव्वत्तव्वं सिएण संजुत्तं । अव्वत्तव्वा ते तह, पमाणभंगी सुणायव्वा ।।
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