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ओसवंश का बीजारोपण
महावीर युग में ही 'उपकेश गच्छ पट्टावली' के अनुसार वीर निर्वाण सं. 70 में पार्श्वनाथ परम्परा के आचार्यों में सातवें पट्ट रत्नप्रभसूरि ने उपकेशनगर (ओसियां) में चातुर्मास किया। 'उपकेश गच्छ पट्टावली' में उल्लेख है कि भिन्नमाल के राजा भीमसेन के पुत्र पुंज का राजकुमार उत्पलदेव अपने पिता से रुष्ट होकर क्षत्रिय मंत्री उहड़ के साथ भिन्नमाल से निकल पड़ा और उसने 12 योजना लम्बे चौड़े क्षेत्र में उपकेशनगर बसाया। वहाँ आहार पानी की अनुपलब्धि थी। एक दिन उपकेशनगर के राजा उत्पल के दामाद त्रैलोक्यसिंह को, जो मंत्री उहड़ का पुत्र था, एक भयंकर विषिधर ने डस लिया। उस समय आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उसे जीवन दान दिया। उस अद्भुत घटना से प्रभावित होकर अनेक क्षत्रियों ने जैनधर्म अंगीकार किया और वे महाजन कहलाए। यही महाजन भविष्य के उपकेशनगर के नाम के कारण ओसवाल कहलाए। आचार्य रत्नप्रभु ने सच्चिकादेवी को ओसवालों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित किया। ‘पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास' में आचार्य रत्नप्रभसुरि की अविच्छिन्न परम्परा को प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार महावीर युग के अंतिम चरण में ओस (वाल) वंश का बीजारोपण महाजन वंश के रूप में उपकेशनगर, उएसनगर अथवा ओसिया में हुआ।
महावीरोत्तर युग : जैनमत का प्रसारकाल .
विविध प्रदेशों में जैनमत का प्रसार
भगवान महावीर के पश्चात् जैनमत का प्रसार पूरे देश में हुआ और उनके द्वारा बताए रास्ते को अंगीकार कर श्रावक धर्म के निकष पर खरे उतरने लगे। महावीर के पश्चात्, प्रकृति के विनाश के पश्चात् भी पूरे देश में तीर्थंकारों की मूर्तियां, विहार, गुफाएं, मंदिर के रूप में देश में जैनमत की लम्बी विरासत मिलती है। ओसवंश ने भी जैनमत की लम्बी सांस्कृतिक विरासत को अपने भीतर संजो कर रखा है।
__ जैन समाज का देश में छोटा समुदाय है, जिन्हें अल्पसंख्यक कहा जा सकता है और जब अल्पसंख्यक समुदायों- मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी की बात आती है, तो उन्हें दूर तक इसे बहुसंख्यक हिन्दू समाज का अंग (Offshoot) मान लिया जाता है। एक समय में वे अल्पसंख्यक नहीं थे। श्रमण सभ्यता पूरे देश में फैली हुई थी।
जैनमत की कहानी में बिहार ने एक विशिष्ट भूमिका निभाई है। वर्द्धमान या महावीर बिहारी की धरती में ही जन्मे। बिहार तीन तीर्थंकारों- शीतलनाथ, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ की
1. Jain Journal, Mahaveer Jayanti Special, Page 146
The Jains today are a small community in this country which may reasonably be called a minority and yet when minorities are usually referred to the muslims, the sikhs, the Christians, the Budhists, the Parsis, the Jain are scarcely remembered or mentioned as if they are a remote offshoot of a dominant Hindu majority
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