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1. Jain Journal, Page 166.
जैन के पुरावशेषों की दृष्टि से बिहार शीर्ष पर है ।
आज बंगाल में जैनमत लुप्तप्राय: है, किन्तु एक समय ऐसा नहीं था । महावीर ने बंगाल में भी यात्रा की थी । भद्रबाहु का जन्म बंगाल में हुआ। गुप्तकाल में एक तांबे की प्लेट पांचवी शताब्दी (478-79 ई) की उपलब्ध है, जो एक जैन पुरावशेष है। ह्वेनसांग ने भी बंगाल निर्ग्रथ साधुओं को देखा। बंगाल में नवीं और दसवीं शताब्दी की अनेक जैनमूर्तियां उपलब्ध है । ऋषभ की मूर्तियां ध्यानमुद्रा और कायोत्सर्ग की मुद्रा में यहाँ मिलती है। बंगाल के अनेक जिलों के साथ सुन्दरवन के जनपदों में बौद्धमत और हिन्दूमत के साथ जैनमत भी एक शक्तिरूप में उपस्थित था । '
2. वही, पृ 166
3. वही, पृ 166
उड़ीसा में जैनमत का इतिहास पार्श्वनाथ और उनके भी पहले अट्ठारहवें तीर्थंकर अरनाथ तक जाता है, जिन्हें प्रथम भिक्षा रायपुरा में मिली। 2 पार्श्वनाथ का कलिंग के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । जैनमत का सम्बन्ध उड़ीसा से तेइसवें तीर्थंकर से रहा है, जिन्होंने इस देश के आध्यात्मिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है।' महावीर के पिता कलिंग के शासक के मित्र थे और महावीर ने उपदेश देने के लिये तोसाली और मोसाली की यात्रा की थी। हठीगुम्फा शिलालेख की चौदहवीं पंक्ति में डा. जायसवाल बताते हैं कि कलिंग के कुमारी पहाड़ियों में महावीर ने व्यक्तिगत रूप से उपदेश दिया था । ' चंद्रगुप्त के साम्राज्य में कलिंग नहीं था, क्योंकि वह ऐसे राज्य पर आक्रमण नहीं चाहता था, जो उसके ही धर्म को मानता हो ।' कलिंग में जैनमत का स्वर्णयुग खारवेल के समय में था । ' खारवेल के समय के बारे में विद्वानों में मतभेद है और यह समय चौथी, तीसरी, दूसरी और पहली शताब्दी में हो सकता है। खारवेल के समय में जैनमत का बहुत प्रचार हुआ । यहाँ एक सम्मेलन भी हुआ, जब आगमों को लिपिबद्ध किया गया। इसके साधु श्वेताम्बर
4. वही, पृ 168
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5. वही, पृ 168
6. वही, पृ 169
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Jainism continued to be a potent force along with Budhism & Brahminism in the once florishing Janpadas of the Sunderbans, now wild & forlorn.
All these indicate that possibly Jainism was introduced into Orissa by the twenty third Tirthankara and it exercised a considerable influence in the spiritual life of the country.
Dr. Jayaswal on the basis of the Hathigumpha inscription also holds that Mahavira personally preached his religion in the Kumari Hill of Kalinga.
The farflung empire of Chandragupta did not inclnde Kalinga probably due to the fact that it was a land of Jainism & Chandragupta did not like to wage war on a country which professed his own religion.
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The golden age of Jainism prevailed in Kalinga under illustrious Kharvala.