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1. चउपन्न महापुरिस चरित, पृ86
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मंगसिर वदी एकादशी के दिन निर्वाण प्राप्त किया ।
7. श्री सुपार्श्वनाथ
क्षेमपुरी के महाराजा नंदिसेन का जीव भाद्रपद कृष्णा अष्टमी के दिन विशाखा नक्षत्र में वाराणसी नगरी के महाराज प्रतिष्ठासेन के रानी की कोख में स्थान ग्रहण किया । और ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को विशाखा नक्षत्र में जन्म लिया। नामकरण के समय महाराज प्रतिष्ठा सेन ने सोचा कि गर्भकाल में माता के पार्श्व शोभन रहे, अतः बालक का नाम सुपार्श्वनाथ रखा जाय । विवाह के पश्चात् ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को एक हजार अन्य राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। नवमास के पश्चात् फाल्गुन शुक्ला षष्टी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को निर्वाण पद प्राप्त किया ।
8. श्री चन्द्रप्रभ स्वामी
मंगलावती नगरी के महाराज पद्म अगले भव में चैत्रकृष्ण पंचमी को अनुराधा नक्षत्र में चन्द्रपुरी के राजा महासेन की रानी सुलक्षणा की कोख में गर्भधारण किया और पौष कृष्ण एकादशी
दिन अनुराधा नक्षत्र में जन्म हुआ।' बालक की प्रभा चंद के समान थी, इसलिये बालक का नाम चन्द्रप्रभ रखा। पाणिग्रहण के पश्चात् पौष कृष्णा त्रयोदशी को अनुराधा नक्षत्र में विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण की। तीन मास के पश्चात् फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को अनुराधा नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त किया ।
9. श्री सुविधिनाथ
इन्हें पुष्पदंत भी कहा जाता है। पुष्कलावती विजय के भूपति अगले भव में काकन्दी नगरी के महाराज सुग्रीव और रामादेवी के यहाँ आप तीर्थंकर सुविधिनाथ के रूप में जन्मे । का जीव फाल्गुन कृष्णा नवमी को मूल नक्षत्र में रामादेवी की कोख में गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ। गर्भकाल में माता सब विधियों में कुशल रही, इसलिये इनका नाम सुविधिनाथ और गर्भकाल में माता को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुआ, अतः पुष्पदंतभी रखा गया। इस प्रकार सुविधि और पुष्पदंत- प्रभु के ये दो नाम प्रख्यात हुए । पाणिग्रहण के पश्चात् और लम्बे समय तक राज्य संचालन के पश्चात् एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। कार्तिक शुक्ला तृतीया को मूल नक्षत्र में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और कृष्णा नवमी के दिन मूल नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया। 10. श्री शीतलनाथ
सुसीमा नगरी के महाराज पद्मोत्तर अगले भव में तीर्थंकर शीतलनाथ के रूप में
भगवम्भ ग गब्मगए जणणी सुपासत्ति तओ भगवओ सुपासत्तिणामं कयं ।
2. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित, 3/6/32
पौष कृष्ण 13 मानी गई है।
3. वही, पृ49-50
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