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45 भगवान महावीर द्वारा प्रवर्तित जैन दर्शन के सिद्धान्त केवल महावीर की ही देन नहीं है, वह पार्श्वनाथ की भी देन है। इस तरह का विभागीकरण करना उचित नहीं है।
वस्तुत: दार्शनिक चिन्तन का उहापोह उपनिषदों में माना जाता है। यह निश्चित है कि उपनिषद भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व के नहीं है। उस काल से ही उनका प्रणयन प्रारम्भ हुआ था। बहुत से विद्वानों का कहना है कि प्राचीनतम उपनिषदों को ईस्वी पूर्व 600 से पूर्व नहीं रखा जा सकता। डा. विन्टरनीट्स ने उन्हें ईस्वी पूर्व 750-500 के मध्य रखा है।'
न केवल जैन साहित्य से किन्तु बौद्ध साहित्य से भी पार्श्वनाथ की ऐतिहासिक प्रमाणित होती है। डा. याकोबी के अनुसार, यदि जैन और बौद्ध सम्प्रदाय एकसा प्राचीन होते , जैसा कि बुद्ध और महावीर की समकालीनता तथा दोनों सम्प्रदायों का संस्थापक मानने से अनुमान है कि ऐसा उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता।
धर्मानन्द कोशाम्बी ने भगवान पार्श्वनाथ पर 'पार्श्वनाथ का चार याम' नामक पुस्तक लिखकर अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत की है। भगवान पार्श्वनाथ अहिंसक क्रांति के अग्रदूत हैं।
तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष हैं। उनका तीर्थ प्रवर्तन भगवान महावीर से 250 वर्ष पहले हुआ। भगवान महावीर के समय तक उनकी परम्परा अविच्छित्र थी। भगवान महावीर के माता-पिता भगवान पार्श्व के अनुयायी थे । अहिंसा और सत्य की साधना को समाजव्यापी बनाने का श्रेय भगवान पार्श्व को है। भगवान पार्श्व अहिंसक परम्परा के उन्नयन द्वारा अत्यन्त लोकप्रिय हो गये थे। मेजर जनरल फल्ग के अनुसार ""उस काल में सम्पूर्ण भारत में एक ऐसा अति व्यवस्थित, दार्शनिक, सदाचार एवं तप प्रधान धर्म अर्थात् जैनधर्म अव्यवस्थित था, जिसके आधार से ही ब्राह्मण एवं बौद्धादिधर्म सन्यास बाद में विकसित हुए। डा. हर्मन जैकोबी ने भगवान पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक पुरुष स्वीकार किया है। उत्तराध्ययन सूत्र की भूमिका में डा. चार्ल शार्पटियर ने लिखा, "जैनधर्म निश्चित रूपेण महावीर से प्राचीन है। उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्श्व प्रायः निश्चित रूपेण एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं, एवं परिणामस्वरूप मूल सिद्धान्तों की मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्ररूप धारण कर चुकी होंगी।"
1. जैन साहित्य का इतिहास, पृ203 2. हरिवंशपुराय, पर्व 1, अध्याय 33 3. युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन परम्परा का इतिहास, 119 4. डा. ज्योतिप्रसाद, भारतीय इतिहास, एक दृष्टि, पृ149 . 5. The Sacred Books of the East, Vol XIV Int Page 21
"That Parsva as a historical person is now admitted by all." 6. The Unttaradhyayane Sutras, Introduction, Page 21
We ought to remember both, the Jain religion is certainly older than Mahaveer, his reputed predecessor Parsva having almost certainly existed as a real person, and that subsequently, the main points of original doctrive may have been codified long before Mahavira.
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