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(2) महावीर युग: जैनमत का विकासकाल
जैनमत के प्रवर्तनकाल और प्रवर्द्धनकाल के पश्चात् चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के युग को जैनमत का विकासकाल कह सकते हैं। आदि तीर्थंकर ऋषभ देव से लेकर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने श्रमण परम्परा के द्वारा इस देश में धार्मिक क्रांति का सूत्रपात किया, किन्तु महावीर ने जैनमत में धार्मिक क्रांति के साथ आध्यात्मिक क्रांति का उद्घोष किया। जैनमत के इतिहास में महावीर का अवदान युगान्तकारी रहा और वे एक ऐसे मिलन बिन्दु पर खड़े थे, जहाँ एक युग का पटाक्षेप हो रहा था और एक नया युग जन्म ले चुका था। महावीर युग का प्रसार प्रथम श्रुतकेवलि भद्रबाहु के समय तक है, क्योंकि भद्रबाहु के साथ महावीर के अखण्ड जिनशासन का अन्त हुआ और वह श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में बँट गया। भगवान महावीर
बौद्ध पिटकों में निर्दिष्ट निगंठ' नाटपुत्र ही जैनों के अंतिम तीर्थंकर महावीर हैं। 'निगंठ नाटपुत्र' निग्रंथों के बड़े भारी संघ के अधिपति थे, यह बौद्ध पिटकों के उल्लेखों से स्पष्ट है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं के अनुसार महावीर कुण्डपुर या कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ के पुत्र थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार सिद्धार्थ नाथवंश या णाह वंश के क्षत्रिय थे और श्वेताम्बरी परम्परा के अनुसार णायकुल के थे। इन्हें णायकुलचंद और णायपुत्र कहा है।' राहुल सांकृत्यावन ने नाटपुत्र का अर्थ ज्ञातृपुत्र और नाथपुत्र दोनों किया है। बेवर के अनुसार "यह अनुमान करने में कोई कठिनाई नहीं है कि निगंठों या निग्रंथों के प्रमुख नाटपुत्र या ज्ञातिपुत्र
और ज्ञातवंश के उत्तराधिकारी एवं निग्रंथ अथवा जैन सम्प्रदाय के अंतिम तीर्थंकर वर्धमान एक ही ऋषि हैं।" बौद्ध बार बार कहते हैं कि निगंठ नाटपुत्र अपने को अहँत कहते और सर्वज्ञ मानते हैं। बुद्ध का प्रतिद्वन्द्वी बड़ा प्रभावशाली एवं खतरनाक था तथा बुद्ध के समय में ही उसका धर्म फैल चुका था।"
भगवान महावीर का जन्म कुण्डपुर या कुण्डग्राम में हुआ, यह दोनों सम्प्रदायों को मान्य है। 'आचरांग सूत्र' में कुण्डग्राम को एक सन्निवेश कहा है। सत्रिवेश का अर्थ है, नगर के बाहर का प्रदेश। आचरांग सूत्र को भगवान महावीर को नाथ या ज्ञातृकुल के और विदेह देश माना है
नाए नाटपुत्र नाथकुल निव्वते विदेहे विदेहजच्चे सूमालै तीसं वासई विदेहं सित्ति कटु आगार मज्झे वसित्ता।
'सूत्रकृतांग' में भी भगवान महावीर को वैसालिय (वैशालिक) कहा है। वैशालिय कहने के तीन अभिप्राय हैं - उनकी माता विशालाथी, वे विशाल कुल में उत्पन्न हुए थे तथा उनके
1. पं. कैलाशचंद्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पृ43 2. Bevar, Indian Sect of the Jains Page 29, 36 3. आचरांगसूत्र, 2/3/399 4. वही, 2/3/402 5. सूत्र कृतांग, 1/2/3
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