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जन्मे । भद्दिलपुर के राजा दृढरथ इनके पिता और नन्दादेवी इनकी माता थी। बालक के गर्भकाल के समय महाराज दृढ़रथ की भयंकर दाह ज्वर की पीड़ा नन्दादेवी के स्पर्शभाव से शांत हो गई , इसलिये बालक का नाम शीतलनाथ रखा। माता नंदा ने माघकृष्णा द्वादशी को पूर्वापाढा नक्षत्र में पुत्ररत्न को जन्म दिया था। माघकृष्ण द्वादशी को पूर्वापाढा नक्षत्र मे दीक्षित हुए और पौषकृष्णा चतुर्दशी को पूर्वापाढा नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त किया। वैसाख कृष्णा तृतीया को पूर्वापाढा नक्षत्र के समय प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया। 11. श्री श्रेयांसनाथ
ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ पूर्वभव में पुण्करद्वीप के राजा नलिनगुल्म थे। सिंहपुरी नगरी के अधिनायक महाराज विष्णु इनके पिता और महारानी विष्णु देवी इनकी माता थी। बालक के जन्म के समय राजपरिवार और राज का श्रेयकल्याण हुआ, इसलिये बालक का नाम श्रेयांसनाथ रखा। पाणिग्रहण के पश्चात् एक हजार राजाओं के साथ फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को को श्रवण नक्षत्र में अशोक वृक्ष के नीचे प्रव्रज्या ग्रहण की। माघ कृष्ण अमावस्या को केवलज्ञान प्राप्त किया और श्रावण कृष्ण तृतीया को धनिष्ठा नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया। 12. श्री वासुपूज्यजी
बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य जी पूर्वभव में पुषकरार्द्ध द्वीप के मंगलावती विजय में पद्मोत्तर राजाथे। भारत की प्रसिद्ध चम्पा नगरी के प्रतापी राजा इनके पिता और जयादेवी माता थी। ज्येष्ठ शुक्ला नवमी को शतभिषा नक्षत्र में पद्मोत्तर के जीव ने गर्भ में स्थानग्रहण किया और फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी के दिन शताभिषा नक्षत्र में इनका जन्म हुआ। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार तीर्थंकर वासुपूज्य अविवाहित माने गये हैं, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के “चउपन्न महापुरिस चरियं' में विवाह एवं राज्यपालन के पश्चात् दीक्षा ग्रहण की। माघ शुक्ला द्वितीया को शताभिषा नक्षत्र के समय केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। 13. श्री विमलनाथ जी
तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ अपने पूर्वभव में महापुरी नगरी के पद्मसेन थे। पद्मसेन का जीव वैशाख शुक्ला द्वादशी को उत्तराभाद्र नक्षत्र में माता श्यामा की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। महाराज कृतवर्मा कपिलपुर के महाराजा थे और उनकी महारानी थी श्यामा। माघ शुक्ला तृतीया को उत्तराभाद्रपद में विमलनाथ का जन्म हुआ। बालक के गर्भ में रहते समय माता मन से निर्मल रही, इसलिये बालक का नाम विमलनाथ रखा गया।' पाणिग्रहण के पश्चात् माघ शुक्ला चतुर्थी की उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में विमलनाथ दीक्षित हुए। भगवान विमलनाथ ने आषाढ़ कृष्ण सप्तमी को
1. त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्त, पृ47 2. वही, पृ86 3. चउपन्न महापुरिसचरित, पृ 104 4.त्रिषष्टि श्लाका पुरुष चरित्त, पृ48
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