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मृगशिर नक्षत्र में संयमधर्म में दीक्षित हुए । चौदह वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात् कार्तिक कृष्णपंचमी को श्रावस्ती नगरी में मृगशिर नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त किया। आप चैत्र शुक्ला छठ को मृगशिर नक्षत्र में सिद्ध, मुक्त और निवृत्त हो गये। 4. श्री अभिनन्दन
___ भगवान सम्नक्नाथ के पश्चात चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दन हुए। पूर्वभव में महाबल (समवयांग सूत्र में धर्मसिंह) का जीव महाराजा संवर के यहां तीर्थंकर रूप में उत्पन्न हुआ। महारानी सिद्धार्था ने वैशाल शुक्ला चतुर्थी को गर्भ धारण किया, किन्तु हरिवंशपुराण' के अनुसार माघ शुक्ल 12 को यह घटना घटित हुई। माता पिता और परिजनों में प्रसन्नता छा गई इसलिये इनका नाम अभिनन्दन रखा। इनके पिता ने इन्हें राज्यपद दिया और स्वयं ने दीक्षा ग्रहण की। आप दीक्षा के दूसरे दिन साकेतपुरी पधारे । अट्ठारह वर्षों की कठोर साधना के पश्चात् पौष शुक्ला चतुर्दशी को अभिजित नक्षत्र में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख शुक्ला अष्टमी को निर्वाण पद प्राप्त किया। 5. श्री सुमतिनाथ
जम्बूद्वीप के पुष्कलावती में आप महाराजा विजयसेन और सुदर्शना के पुत्र थे। राजकुमार का नाम पुरुषसिंह रखा गया। पिताकीआज्ञा लेके वैराग्य प्राप्ति के पश्चात् आचार्य विजयानन्द के पास श्रमणधर्म में दीक्षित हो गये। यही पुरुषसिंह अयोध्यापति महाराज मेघ के यहां माता मंगलावती के गर्भ से जन्मे सुमतिनाथ कहलाए । वैशाख शुक्ला अष्टमी को मध्यरात्रि के समय मघा नक्षत्र में आपका जन्म हुआ। महाराज मेघ ने कहा “मेरे पुत्र ने उलझी हुई समस्याओं का हल निकाला है, इसलिये मेरे पुत्र का नाम सुमतिनाथ रखा जाय।' पाणिग्रहण के पश्चात् आप वैशाख शुक्ला नवमी के दिन मघा नक्षत्र के समय मुनि बन गये। बीस वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात् चैत्र शुक्ला एकादशी ने दिन मघा नक्षत्र के समय आपको केवल ज्ञान हुआ। चैत्र शुक्ला नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र में सिद्ध और मुक्त होकर निर्वाण पद प्राप्त किया। 6. श्री पद्मप्रभु
सुसीमा नगरी के न्यायप्रिय शासक महाराज अपराजित अगले भव में कौशाम्बी नगरी के महाराजाधर के यहाँ छठे तीर्थंकर महाप्रभु के रूप में जन्म लिया। आप माघ कृष्णा षष्टी के दिन चित्रा नक्षत्र में माता सुसीमा की कोख में गर्भ धारण किया और कार्तिक कृष्ण द्वादशी के दिन जन्मे । बालक के शरीर की प्रभा पद्म के समान थी, इसलिये इनका नाम महापद्म रखा गया। विवाह के पश्चात् कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन दीक्षा ग्रहण की। आप छ: मास तक कठोर तपस्या करते रहे और फिर चैत्र सुदी पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त किया।
1. हरिवंश पुराण, गाथा- 169-180, 2. चउपन्न महापुरिस चरित्र, पृ75
भगवम्मि रागब्भत्थ कुलं रजंणगरं अभिणंदह, ति तेण जणणि जणएहिं वियरिऊअण गुण निष्फ अभिणंदके ति बाययमं कयं।
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