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38 महाराज वसुसेन ने कहा, गर्भ समय में बालक की माता ने कुंथु नाम के रत्नों की राशि देखी, अत: बालक का नाम कुंथुनाथ रखा जाता है।' वैसाख कृष्ण पंचमी को कृतिका नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की और चैत्रशुक्ला तृतीया को कृतिका के योग में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैसाख कृष्ण प्रतिपदा को कृतिका नक्षत्र में प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया। 18. श्री अरनाथ
___ अट्ठारहवें तीर्थंकर अरनाथ पूर्वभव में सुसीमा नगरी के महाराज धनपति थे। धनपति का जीव हस्तिनापुर के महाराज सुदर्शन कीरानी महादेवी की कुक्षि में फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को गर्भरूप में उत्पन्न हुआ और मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को रेवती नक्षत्र में जन्म लिया। गर्भकाल में माता ने बहुमूल्य रत्नमय चक्र के अर को देखा इसलिये बालक का नाम अरनाथ रखा गया। पाणिग्रहण और राज्यभोग के पश्चात् मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को रेवती नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की और कार्तिक शुक्ला द्वादशी को रेवती नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त किया। प्रभु ने मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को रेवती नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। 19. श्री मल्लिनाथ
भगवान मल्लिनाथ का जीव तीसरे भव से महाविदेह क्षेत्र का महाराजा महाबल था। मिथिला के महाराजा कुम्भ की महारानी प्रभावती देवी की कुक्षि में मल्लिनाथ ने गर्भ रूप में स्थान ग्रहण किया। मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी की मध्यरात्रि को अश्विनी नक्षत्र का योग होने पर बालिका मल्लि का जन्म हुआ। अर्हत मल्लि ने पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन अश्विनी नक्षत्र के योग के समय, तीन सौ महिलाओं और आठ राजकुमारों- नंद, नंदिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, अमरसेन और महासेन के पास दीक्षा ग्रहण की। प्रभु को पौष शुक्ला एकादशी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और चैत्र शुक्ला चौथ की अर्धरात्रि को निर्वाण पद प्राप्त किया। 20. श्री मुनिसुव्रत जी बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत पूर्वभव में चम्पा नगरी के महाराज सुरश्रेष्ठ थे। सुरश्रेष्ठ के जीव ने राजगृही की महारानी पद्मावती की कोख में श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को श्रावण नक्षत्र में स्थान ग्रहण किया और ज्येष्ठ कृष्णा नवमी के दिन श्रावण नक्षत्र में पुत्ररूप में जन्म लिया। गर्भ के समय माता मुनि रूप में व्रतपालती रही, इसलिये बालक का नाम मुनि सुव्रत रखा गया। विवाह के पश्चात् फाल्गुन कृष्णा अष्टमी के दिन श्रवण नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की। फाल्गुन कृष्णा द्वादशी के दिन प्रभु को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और ज्येष्ठ कृष्णा नवमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। जैन साहित्य के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम राम मुनिसुव्रत के समकालीन थे।
1. चउपन्न महापुरिस चरित, पृ152 2. वही, पृ 153
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