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बदलती परिस्थितियों ने जातियों ने अपने स्वरूप को बदला है और अब इसे अराष्ट्रीय और अप्रजातांत्रिक व्यवस्था नहीं कह सकते हैं। यह कहना भीभूल है कि जाति केवल विश्रृंखलित सामाजिक संस्था है, जो भारतवर्ष के वातावरण को दुर्गंध से भर रही है। केवल राजनीतिक और कुछ राजनीतिक दलों के कारण सामाजिक समानता के नाम पर जातिवाद का जहर फैल रहा है, जिससे हमारा जनतंत्र को खतरा है। जनतंत्र को खतरा जातियों से नहीं, चुनाव की राजनीति में आंकठ डूबे राजनीतिज्ञों से है। ओसवंश से पहले : क्षत्रिय और राजपूत
'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार वीर संवत् 70 वर्ष बाद ओसियां में प्रतिबोध पाकर जो क्षत्रिय जैन बने, वे 18 गोत्रों के थे। भाटों के अनुसार 222 वि.सं. में जो क्षत्रिय जैन बने, वे क्षत्रियों के 18 गोत्रों के थे। ओसवाल जाति का उद्गम मूल क्षत्रिय माना जाता है। कालांतर मैं जैन धर्म के प्रभाव से हिंसा छोड़कर ये व्यावसायी बने। ओसवंश की उत्पत्ति क्षत्रियों और राजपूतों से मानी जाती है, इसलियेउस बात की अपेक्षा है कि राजपूतों की उत्पत्ति के रहस्य की छानबीन की जाय।
इस सम्बन्ध में तीन मत प्रचलित है। राजपूत विदेशी हैं। राजपूत मिश्रित जाति हैं।
राजपूत विशुद्ध आर्यों की संतान हैं। क्या राजपूत विदेशी है ?
कतिपय इतिहासकारों ने राजपूतों की उत्पत्ति के प्रश्न को जटिल बना दिया है। विलियम क्रुक और डॉ. वी.एस. स्मिथ आदि विदेशी इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशी जातियों की संतान ही मान लिया है। कर्नल टाड के अनुसार राजपूतों के स्वभावों और उनकी आदतों से भी इस बात का साफ पता चलता है कि वे और शक लोग किसी समय एक थे और ठंडे प्रदेश में एक साथ रहा करते थे। इसका प्रमाण है कि शक लोगों की सभी बातें राजपूत जातियों में पाई जाती हैं। शीत प्रधान देश के रहने वाले शकों के स्वभाव और उनकी आदतों को अपना लेना गर्म देश के निवासियों के लिये सम्भव न था। शक लोगों की वीरता, उनकी आदतें और उनके विश्वास राजपूतों में पूर्णरूप से देखने को मिलते हैं। अनेक प्रकार की सामाजिक प्रथाओं के साथ साथ अश्वमेघ यज्ञ की प्रथा भी राजपूतों में वही है, जो शक लोगों में पाई गई है।
कर्नल टाड यह भी कहते हैं कि सती प्रथा, अश्वमेघ यज्ञ, सूर्यपूजा, शस्त्रों और घोड़ों की पूजा और मद्यपान आदि प्रथाएँ राजपूतों ने ज्यों की त्योंशकों और हूणों से ली है। उनका मत है कि पाँचवीं और छठी शताब्दी से पहले राजपूत शब्द का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। वे चंदेल,
1. सोहनराज भंसाली, ओसवाल वंश: अनुसंधान के आलोक में, पृ. 10 2. ठाकुर ईश्वरसिंह मडाढ, राजपूत वंशावली, पृ. 1 3. कर्नल टाड, राजपूताने का इतिहास, पृ. 38
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