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न अग्निवंशीय सिद्धान्त, न सूर्यवंशी और चन्द्रवंशीय सिद्धान्त, न ब्राह्मणवंशीय सिद्धान्त और न विदेशी सिद्धान्त । डॉ. कानूनगो के अनुसार “अग्निकुण्ड की कहानी इस प्रगतियुग में नहीं चल सकती। उनकी सूर्य और चन्द्र से उत्पत्ति एक काल्पनिक सत्य हो सकती है, लेकिन यह सत्य है कि इतिहास में उन्होंने महाकाव्यकाल के क्षत्रियों की परम्परा को बनाए रखा है।" राजपूत जाति आर्यों की सन्तान है, क्षत्रियों की सन्तान है, किन्तु दीर्घकाल में थोड़े बहुत मिश्रण से इन्कार नहीं किया जा सकता। आज के युग में शुद्ध प्रजाति और रक्त की शुद्धता का आग्रह व्यर्थ है। ओसवंश
ओसवंश की उत्पत्ति मुख्यरूप से क्षत्रियों और राजपूतों से और आंशिक रूप से अन्य जातियों से हुई है। ओसवाल जाति आर्य जाति की सन्तान है और उनकी धमनियों में क्षत्रिय आर्यों का रक्त प्रवाहित है। इस दीर्घ अवधि पर कहाँ और कब मिश्रण हुआ, इससे कौन इन्कार कर सकता है ?
1. Dr. Kanungo, Studies in Rajput History, Introduction
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