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21 के लेख में यौधयों को स्पष्ट कर क्षत्रिय लिखा है। तीसरी शताब्दी के आसपास जग्ग्यपेट तथा नागार्जुनी कोंड के लेखों में इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं का नामोल्लेख है।
श्री जगदीश सिंह गहलोत का भी मत है, "मुसलमानों के आक्रमण तक यहाँ के राजा क्षत्रिय कहलाते थे। बाद में उनका बल टूट गया और ये स्वतंत्र राजा के स्थान पर सामन्त, नरेश हो गये। मुसलमानों के समय में ही इन शासक राजाओं की जाति के लिये राजपुत्र या राजपूत शब्द काम में आने लगा।"
ओझाजी का मत है, मुसलमानों के राजत्वकाल में क्षत्रियों के राज्य क्रमश: अस्त हो गये और जो बचे उनको मुसलमानों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी, अत: वे स्वतंत्र राजा न रहकर सामन्त से बन गये। ऐसी दशा में उनके लिये मुसलमानों के समय में राजवंशी होने के कारण “राजपूत' नाम का प्रयोग होने लगा।
वस्तुतः राजपूत मिश्रित जाति भी नहीं है, क्योंकि हिन्दू धर्म, विशेषकर राजपूतों के नियम और उपनियम इतने कठोर थे कि उसमें दूसरे धर्मानुयायी को प्रविष्ट न होने दिया जाता था। यहाँ की वर्णव्यवस्था और राजपूतों के नियम ईस्वी शताब्दी के बाद तो इतने कठोर हो गये कि किसी भी क्षत्रिय की जरा सी गल्ती होने पर उसे जाति से निकाल दिया जाता था।'
___ अत: राजपूत जाति न विदेशी है और न मिश्रित, किन्तु विशुद्ध आर्यों की सन्तान है। अग्निवंश का रहस्य
पंवार, परमार, चौहान (चाहमान), चालुक्य तथा प्रतिहार (गुर्जर प्रतिहार) इन 4 वंशों को कई इतिहासकार अग्निवंशी मानते हैं। इन मतों का उल्लेख सर्वप्रथम चन्दरबरदाई ने अपने ग्रंथ 'पृथ्वीराजरासो' में किया है। चन्दरबरदाई का मत है कि जब परशुराम ने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से शून्य कर दिया, तो राक्षसों ने ऋषियों को सताना शुरू कर दिया। राक्षस ऋषियों द्वारा रचाये गये यज्ञों में हाड़मांस आदि डालकर अपवित्र कर विध्वंस कर दिया करते थे। ऐसी स्थिति में वशिष्ठ आदि कई ऋषियों ने आबू पर्वत पर एक यज्ञ रचाया और प्रभु से प्रार्थना की कि हमारी रक्षा के लिए एक शक्तिशालीजाति उत्पन्न की जाय। कहते हैं कि उस यज्ञ में चार शक्तिशाली पुरुष उत्पन्न हुए जिन्होंने अपने नाम पर उपरोक्त चार वंशों को चलाया। मुहणोत नैनसी ने अपनी ख्यात में, सूर्यमल मिश्रण ने वंश भास्कर' में, कविधनपाल ने 'तिलक मंजरी' में, अबुलफजल ने 'आइने अकबरी' में, कवि जोधराज ने 'हम्मीर रासो' में तथा पद्मगुप्त ने 'नवसाहसांक चरित' में इस मत की पुष्टि की है।
यह मत केवल मात्र कवियों की मानसिक कल्पना का फल है। कोई इतिहास का
1. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, राजपूताने का इतिहास, पृ. 41-76 2. जगदीश सिंह गहलोत, राजपूताने का इतिहास, पृ7 3. राजपूत वंशावली, पृ.6 4. वही, पृ. 8 5. वही, पृ. 8-9
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