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नृत्याध्यायः नाट्याचार्यों के अभिमत से मद्यपान के अभिनय में शिखर हस्त को ( ऊर्ध्वमुख में ) मुख पर अवस्थित करना चाहिए । आदेश या निषेधाज्ञा के आशय में दोनों शिखर हस्तों को अधोमुख करके शिर पर रखना चाहिए। ऊर्ध्वाधः शिखरौ हस्तौ सम्मुखागुष्ठको मिथः ।
62 वर्तितौ नावि संप्रोक्तौ बुधस्तञ्चालनेऽप्यथ ॥६०॥ विद्वानों का कहना है कि नाव और उसके चलाने के अभिनय में दोनों शिखर हस्तों के अंगठों को परस्पर आमने-सामने करके ऊपर-नीचे अवस्थित करना चाहिए ।
क्रोशनेऽङ्गुलिसंस्फोटे स्त्रीभिस्तु शिखरद्वयम् । .. 63
संयुतं तद्विधातव्यं संयुज्य तु वियोजितम् ॥६१॥ स्त्रियों को चाहिए कि वे चिल्लाने और उँगली तोड़ने के अभिनय में दोनों शिखर हस्तों को पहले मिला दें और बाद में अलग कर दें।
नास्तीत्युक्तावथ मनाक्चलस्तूष्णीं निरूपणे । G4.
एवं कर्मान्तराण्यस्य ज्ञातव्यानि मनीषिभिः ॥६२॥ 'नहीं हैं ऐसे कथन तथा मौन होने का भाव दिखाने में शिखर हस्त को थोड़ा कम्पित कर देना चाहिए। शिखर हस्त के अन्य अनेक प्रयोगों की जानकारी के लिए नाट्यविशेषज्ञों का आश्रय लेना चाहिए। १२. कपित्थ हस्त और उसका विनियोग
करस्य शिखरस्य स्यादङ्गुष्ठाग्रेण । पीडितम् ।
तर्जन्यग्रं यदा यत्र कपित्थोऽसौ तदा करः ॥६३॥ यदि शिखर हस्त मुद्रा की तर्जनी के अग्रभाग को अंगुठे के अग्रभाग से दबा दिया या योजित किया जाय तो उसे कपित्य हस्त कहते हैं ।
काकाकर्षणे योज्यो यथाभूतार्थदर्शने । चक्रचापगदादीनां धारणे तालवादने ॥६४॥
प्रतोदग्रहणेऽप्येष मुक्तादिग्रथने तथा । 67 धनुष खींचने, किसी वस्तु को ज्यों-का-त्यौं दिखाने, चक्र-धनुष-गदा आदि धारण करने, ताल देने
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