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पन्द्रह हस्तप्रचार का निरूपण हस्तप्रचार (संचालन) के भेद .
उत्तानोऽधोमुखः पार्श्वगत एवं त्रिधोदितः । करप्रचारोऽशोकेनापरे तं पञ्चधा जगुः ॥६००॥ 594 अग्रगोऽधस्तलश्चेति द्वौ त्रयः प्रथमोदिताः । प्राहोत्तानोऽग्रगं भट्टोऽधोमुखोऽधस्तलं यतः ॥६०१॥ 595 अन्तर्भूतं ततस्त्रित्वं सङ्गतं प्रथमे मते । ऊत्तानोऽधस्तलः पार्श्वमुखोऽप्यग्रतलस्तथा ॥६०२॥ 596 स्वसम्मुखतलः पार्वतलः पार्श्वगतोऽग्रगः । ऊर्ध्वगोऽधोगतश्चाथ सम्मुखः सम्मुखागतः ॥६०३॥ 597 ऊर्ध्वमुखस्तथा चाधोवदनोऽथ पराङ्मुखः ।
एवं पञ्चदश प्राहुः प्रचारान् केऽपि सूरयः ॥६०४॥ 598 अशोकमल्ल ने हस्तप्रचार (हस्त-संचालन) के तीन भेद बताये है : १. उत्तान २. अधोमुख और ३. पार्श्वगत। दूसरे विद्वानों ने उसके पाँच भेदों का उल्लेख किया है : १. अग्रग, २. अषस्तल, ३, उत्तान, ४. अधोमुख और ५. पार्श्वगत । आचार्य भट्ट का कहना है कि अग्नग और उत्तान तथा अधोमुख और अधस्तल अभिन्न हैं। इसलिए प्रथम मत में ही दूसरे मत का अन्तर्भाव हो जाता है। कुछ विद्वानों ने उसके पन्द्रह भेद बताये हैं : उनके नाम हैं : १. उत्तान, २. अघस्तल, ३. पार्श्वमुख, ४. अग्रतल, ५. स्वसम्मुखतल, ६. पार्वतल, ७. पार्श्वगत, ८. अग्रग, ९. ऊर्ध्वग, १०. अघोगत, ११. सम्मुख, १२. सम्मुखागत, १३. ऊर्ध्वमुख, १४. अधोमुख और १५. पराक मुख ।