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नृत्तकरण प्रकरण
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यदि अडिडता चारी बनाकर और दोनों हाथों को दोलाहस्त में प्रयुक्त कर पूरा शरीर अन्दर की ओर झका दिया जाय तथा दोनों हाथों को जमीन में टेक दिया जाय और तब उसे चक्राकार में घुमाया जाय, तो उसे चक्रमण्डल करण कहते हैं ।
[भवेत्] तद् वरिवस्यायां तथोद्धतपरिक्रमे ॥१२२६॥ 1257 पूजा और शीघ्रतापूर्वक परिक्रमा के अभिनय में चक्रमण्डल करण का विनियोग होता है । ५१. आवर्त और उसका विनियोग
चाषगत्या समं चार्या हस्तौ दोलाभिधौ यदि । विधायोद्वेष्टितौ यत्र कुर्यात्तावपवेष्टितौ ।
तदावर्तमिदं प्रोक्तं धीरैःयदि चाषगति चारी के समान ही दोनों दोला हस्तों की रचना करके उन्हें उद्वेष्टित (खोला) तथा अपवेष्टित (बन्द) कर दिया जाय, तो विद्वान उसे आवर्त करण कहते हैं ।
-भीत्यपसर्पणे ॥१२२७॥ भयपूर्वक पीछे हटने के अभिनय में आवर्त करण का विनियोग होता है । ५२. कुञ्चित और उसका विनियोग . वामपार्वे यदोत्तानोऽलपद्माकारतां दधत् ।
1259 करः सव्योऽथ वामोऽग्रतलसञ्चरसंज्ञकः ।
प्राङ्घ्रिस्तदा कुश्चितं स्यात्जब अलपद्म दाहिना हस्त बायें पाव में उत्तान करके रख दिया जाय और बायाँ पैर अग्रतलसंचर मद्रा में (पीट की ओर घूमा हुआ नत रूप में) अवस्थित किया जाय, तब उसे कुञ्चित करण कहते हैं ।
-सानन्दसुरगोचरम् ॥१२२८॥ 1260 आनन्दपूर्वक देवताओं के प्रत्यक्ष (पूजन, आवाहन) करने में कुञ्चित हस्त का विनियोग होता है । ५३. दोलापाद
यत्रोर्ध्वजानुश्चारी स्याहोलापादाभिधापि च । करो . दोलाभिधश्चत्तहोलापादमुदीरितम् ॥१२२६॥ 1261
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