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रेचकों का निरूपण
यदि हंसपक्ष मद्रा में दोनों हाथों को बारी-बारी से शीघ्रतापूर्वक चारों ओर घुमाया जाय, तो धीर पुरुषों ने उसे पाणिरेचक कहा है। अथवा, बिरल (अलग-अलग) तथा फैली हुई उँगलियों वाले हाथ को तिरछा घमाया जाय, तो वह (भी) पाणिरेचक कहलाता है । २. कष्ठरेचक
तिर्यग्भ्रान्तिरथो यः स्यात् कण्ठस्य विधुतभ्रमः ॥१४२३॥
स कण्ठरेचकः प्रोक्तः कण्ठरेचककोविदः । 1510 यदि कण्ठ को तिर्यक् रूप में कम्पित करके घुमा दिया जाय, तो कण्ठरेचकवेत्ताओं ने उसे कण्ठरेचक कहा है। ३. कटिरेचक
सर्वतो भ्रमणात् कट्याः कथितः कटिरेचकः ॥१४२४॥
यदि कटि को चारों ओर घमाया जाय, तो उसे कटिरेचक कहा जाता है। .
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४. पादरेचक
या त्वन्तर्बहिरङ्गुष्ठानस्य पानिरन्तरा ।
नमनोन्नमनोपेता गतिः सा पादरेचकः ॥१४२५॥ यदि अंगूठे के अग्रभाग तथा एड़ी के बाहर-भीतर निरन्तर रूप से झुकने-उठने की गति की जाय, तो उसे पादरेचक कहते हैं। धीरधुर्योऽशोकमल्लश्चतुरश्चतुरोदितान् ।
1612 रेचकांश्चतुरोऽवोचज्जितारातिर्महीपतिः ॥१४२६॥ धीराग्रणी, चतुर, शत्रुजयी महाराज अशोकमल्ल ने, बुद्धिमान् व्यक्तियों द्वारा कथित, (उक्त प्रकार से) चार रेचकों का निरूपण किया है ।
चार प्रकार के रेचकों का निरूपण समाप्त ।
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