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नत्याध्यायः
जब नत्य में सुन्दरियों के अंगों की बलन आदि क्रियाओं द्वारा चित्त से सरसता लक्षित होती है, तब कोमलिका नामक लास्यांग होता है।
३७. मुखर
यत्र पात्रं मुखे कुर्याद् वर्णानां तु विवर्तनम् । 1674
... तत्तद्रसानुगुण्येन भवेन्मुखरसस्त्वसौ ॥१५६४॥ जहाँ पात्र अपने मुख में तत्तत् रसों के अनुकूल अक्षरों को परिवर्तित करे, वहाँ मुखरस नामक लास्यांग होता है। अन्य भेद
अन्येऽपि सन्ति ये भेदा देशीलास्याङ्गन्सश्रयाः । 1675
ग्रन्थविस्तरसंत्रासान्न तेऽस्माभिरिपिताः ॥१५६५॥ देशी लास्यांगों के अन्य जो भेद हैं, उन्हें ग्रन्थ के विस्तार भय से नहीं बताया गया है।
लास्यांगों का निरूपण समाप्त
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