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कलासकरन प्रकरण
कुर्यात् तदा भवेद् भेदश्चतुर्थश्च पुरोदितः ॥१५७६॥ 1688 केशबन्ध मद्रा में दोनों हाथों की रचना करके दाहिने और बाँयें हाथों को क्रमश: ललाट और मस्तक पर रख कर दो पताक हस्तों की रचना करे । ऐसा करने से चतुर्थ विद्युत्कलास बनता है। पंचम
कृत्वा पुष्ठपुटं पाणिमुच्चस्तं विनिरीक्ष्य च । तदनूत्सङ्गमारच्य चरण दक्षिणं द्रुतम् ॥१५७७॥ 1689 स्पृशेद् दक्षिणहस्तेन वामाघ्रि वामपाणिना ।
यत्रासौ पञ्चमो भेदः कलासरुदीरितः ॥१५७८।। 1690 पुष्पफ्ट नामक हाथ को ऊँचा करके दो बार निरीक्षण करे; फिर उत्संग नामक हाथ की रचना करके दाहिने हाथ से दाहिने पैर का और बायें हाथ से बायें पैर का स्पर्श करे। ऐसा करने से पंचम विद्युत्कलास बनता है।
षष्ठ
जुतमानकृताघ्रिश्चेदधो [ऽथ] मकरं करम् ।
कृत्वा नृत्यति पाणिभ्यां षष्ठो भेदस्तदोदितः ॥१५७६॥ 1691 त्रिमात्रिक ताल के प्रमाण से पैर और नीचे मकर नामक हाथ की रचना करके दोनों हाथों से नृत्य करे। ऐसा करने से षष्ठ विद्युत्कलास बनता है।
चार खड्गकलास (२)
- प्रथम
.. सव्यापसव्यतो यत्र नर्तकी चकिता मुहः ।
विलोक्य च पुरः पश्चाद् धृतखड्गलतेव सा ॥१५८०॥ 1692 पाचरन्ती प्रचारं चेद् विचित्रमथ हस्तकान् । प्लुतमानकृतानर्धचन्द्रादोन् रचयेत् स्फुटान् । 1693
तदा खड्गकलासोऽसौ विद्वद्भिः परिभाषितः ॥१५८१॥ जहाँ खड्गलता (तलवार) धारण किये हई-सी नर्तकी बायें, दायें, आगे और पीछे देखकर विचित्र चाल चलती हुई त्रिमात्रिक ताल के प्रमाण से अर्षचन्द्र आदि हाथों को सुस्पष्ट रचना करे; वहाँ विद्वानों ने उसे प्रथम खड्गकलास बताया है।
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