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नत्याध्यायः
दाहिना पैर भमरी चारी से युक्त तथा बायाँ पैर अड्डिता से युक्त हो; फिर दाहिना अकटास्या तथा ऊरूवत्ता से और बायाँ अध्यधिका से युक्त हो; दाहिना पुनः भ्रमरी से युक्त हो, और बायाँ स्पन्दिता तथा शकटास्या से युक्त हो; उससे पृथ्वी पर स्पष्ट रूप से पटकने की आवाज हो; तो आरकन्वित भमि मण्डल बनता है। ९. चाषगत
सर्वे चाषगताः पादा यदान्ते मण्डलभ्रमः ।
तदा चाषगतं ज्ञेयं नियुद्ध मण्डलं बुधैः ॥१४८३॥ 1582 जब पैर चावगनि नामक चारी से युक्त हो और अन्त में मण्डलाकार घुमाया जाय; तो चाषगत भूमिमण्डल बनता है । विद्वानों ने इसका विनियोग कुश्ती के अभिनय में बताया है। १०. अध्यर्ध
क्रमादध्रिदक्षिणः स्याज्जनितः स्पन्दितस्ततः । अड्डितोक्तचतुर्भेदो वामः स्यादथ दक्षिणः ॥१४८४॥ 1583 शकटास्यश्चतुर्दिक्षु मण्डलभ्रमणं यदा ।
भवेदन्ते तदा धीरैरध्यधं परिकीर्तितम् ॥१४८५॥ 1584 दाहिना पैर क्रमशः जनिता तथा स्पन्दिता से युक्त और बायाँ पैर अड्डिता के चार भेदों से युक्त हो; फिर दाहिना पैर शकटास्या से युक्त होकर अन्त में चारों दिशाओं में मण्डलाकार घुमाया जाय; तो धीर पुरुष उसे अध्यर्ध भूमिमण्डल कहते हैं ।
चारी नाम्ना प्रविज्ञेयश्चरणस्तु मनीषिभिः । चरणन्यूनताधिक्यं मन्वते नेह दोषकृत् । 1585
अतो न्यूनेऽधिके चाङ्ग्रौ न दुष्टं मण्डलं मतम् ॥१४८६॥ मनोषियों को यहाँ चारी के नाम से चरण को समझना चाहिए । यहाँ विद्वान् लोग चरण की न्यनता या अधिकता को दोषकारक नहीं मानते हैं । इसलिए चरण के न्यन और अधिक होने पर भी मण्डल निर्दष्ट है।
समवेत रूप में बीस मण्डलों का निरूपण समाप्त।
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